जिद्द रूपी बिल्ली
जिद्द की बिल्ली ने दिया, ज्ञान दृष्टि का खोय।
बुरे मार्ग में खुद चले, फिर काहे को रोय॥
एक शहर में नेत्रों का बहुत बड़ा औषधालय था। उस ओषधालय में एक निपुण डॉक्टर था। वह प्रतिदिन सौ पचास अन्धे व्यक्तियों के नेत्र बनाया करता था। एक दिन उस डॉक्टर ने पचास साठ व्यक्तियों की आँखें बनाकर उन्हें वार्ड में भेज दिया। डॉक्टर ने उन्हें समझाया कि तुम लोग चौबीस घंटे सीधे लेटे रहना। शरीर को हिलाना नहीं, न बोलना, निश्चेष्ट पड़े रहना।
दस बारह घंटे मरीज निश्चेष्ट पड़े रहे। इसके बाद एक अन्धे के ऊपर बिल्ली कूद गई। बिल्ली के कूदने से घबरा कर उसका शरीर हिल गया। उसने सोचा मेरी आखें तो खराब हो गई हैं। परन्तु पड़ौसी की आँखें भी ठीक नहीं रहनी चाहिएँ। यह सोचकर कह उठा और पास के दूसरे अंधे को एक लात मारकर बोला- तू चुपचाप पड़ा है और यहाँ मेरे ऊपर बिल्ली कूद गई। तुमसे यह नहीं हुआ कि बिल्ली को पहले ही दूर भगा देता।
यह सुनकर दूसरा मरीज उठा और उसने तीसरे मरीज को दो थप्पड़ जड़ दिये। इस प्रकार प्रत्येक अन्धा मरीज दूसरे को थप्पड़ मारता और उनमें ऐसा उत्पात हुआ कि चार घंटे तक युद्ध का सा दृश्य बन गया। वार्ड के नौकरों ने डॉक्टर महोदय को सूचित किया। डॉक्टर साहब ने अंधे मरीजों से आकर पूछा- तुम लोगों के नेत्र तो बहुत बढ़िया बने थे परन्तु तुम लोगों ने मेरी बात को नहीं माना। जिसका परिणाम यह है कि तुम्हारी आँखें बिगड़ गई हैं। अब तुम्हारी आँखें ठीक नहीं हो सकतीं। अब तुम अपने-अपने घर को जाओ। वे सब नेत्रहीन अपने-अपने घरों को चले गये।
यह एक उदाहरण है जिसमें भूतल एक स्थान है और भारतवर्ष एक अस्पताल है। डॉक्टर भगवान हैं, वे चाहते हैं
कि समस्त जीवों को ज्ञान चक्षु प्राप्त हों। वे समझाते हैं कि हमारे उपदेश वेद को यथार्थ मानो। वेद को मानने में कोई उधम न मचाओ। इस प्रकार सबको भव्य ज्ञान चक्षुओं की प्राप्ति होगी परन्तु जिनके ऊपर जिद रूपी बिल्ली सवार हो जाती है वे बिना ऊधम मचाये नहीं रह सकते । वेद में अड़चन डालने को कभी भी ज्ञान चक्षु की प्राप्ति नहीं होगी।