विजय एकादशी की कथा
बात उस समय की है जब भगवान राम वानर दल के साथ सिंधु तट पर पहुंचे तो रास्ता रुक गया। पास में एक दालभ्य मुनि का आश्रम था जिसने अनेक ब्रह्मा अपनी आंखों से देखे थे। ऐसे चिरंजीव मुनि के दर्शनार्थ राम लक्षमण सहित सेना लेकर चले। शरण में जाकर मुनि को दण्डवत प्रणाम करके मुद्रा से पार होने का उपाय पूछा तो मुनि बोले-कल विजया एकादशी है। उसका ब्रत आप सेना सहित करें। समुद्र से पार होने का तथा लंका को विजय करने का सुगम उपाय यही है। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया, रामेश्वर का पूजन किया। विजया एकादशी के माहात्म्य को सुनने से हमेशा विजय होती हैं।