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सच्चे भक्त की कहानी – प्रेम और आदर्श की प्रतिष्ठा

सच्चे भक्त की कहानी 

एक बार नारद जी ने भगवान विष्णु से पूछा – इस संसार में सच्चा भक्त कौन है? भगवान विष्णु बोले – मैं कल आपको सच्चा भक्त दिखला सकता हूँ।.’ नारदजी का विचार था कि भगवान विष्णु मुझे ही अपना सच्चा भक्त बतायेंगे। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। नारदजी का मन सच्चा भक्त देखने के लिए उतावला हो रहा था। वे बार-बार विचार कर रहे थे कि इनके सच्चे भक्त में ऐसी क्‍या विशेषता होगी जो मेरे अंदर नहीं है।
प्रातः:काल होते ही नारदजी भगवान विष्णु जी के पास पहुंच गये और सच्चा भक्त दिखाने की विनती करने लगे। भगवान विष्णु नारदजी को साथ लेकर एक किसान के मकान के पास से गुजरे।  नारदजी ने देखा कि किसान अपना हल उठा रहा है तथा हल को उठाते समय बड़े जोर से राम नाम का उच्चारण कर रहा है। भगवान विष्णु और नारदजी उस किसान के पीछे-पीछे चल पड़े। किसान दिन भर अपने खेत में परिश्रम करता रहा।
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संध्या होने पर किसान हल को कंधे पर रखकर घर आया तथा हरे राम बोलकर हल को उतारकर रख दिया। भगवान नारद से बोले – यह मेरा सच्चा भक्त है। नारदजी ने कहा – भगवन्‌ इसने तो दिन भर में केवल दो बार ही आपका नाम लिया है। भगवान विष्णु ने नारदजी को बताया इसका उत्तर मैं तुम्हें बाद में दूँगा। अब आप इस तेल से भरे कटोरे को लेकर नगर की परिक्रमा लगाकर आओ परन्तु यह ध्यान रखना कि तेल बिखरने नपाये। बेचारे नारद जी को नगर की परिक्रमा करने में बहुत समय लग गया।
भगवान ने नारदजी से पूछा आपने नगर की परिक्रमा करते समय मेरा नाम कितनी बार लिया। नारदजी बोले-भगवन्‌ मैं तो तेल के कटोरे की देखभाल में लगा हुआ था, आपका नाम लेने की मुझे फुरसत ही नहीं मिली। भगवान ने नारदजी को समझाया कि इस किसान को देखो। इसके ऊपर पूरी गृहस्थी का भार है फिर भी मेरा नाम लेता रहता है परन्तु आपके पास तेल को संभालने का ही काम था तब भी तुम मुझे भूल गये। यह किसान गृहस्थी का बोझा होने पर भी बार-बार मेरा नाम लेना नहीं भूला। अब सोचकर स्वयं ही बतलाइये कि सच्चे भक्त आप हैं या यह किसान। अब नारदजी का अभिमान चकनाचूर होकर बिखर गया।
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