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सकट चौथ की कहानी: भक्ति, प्रेम और पराक्रम की गाथा

सकट चौथ की कहानी 

एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। वह धर्म पुण्य को नहीं मानते थे। इसके कारण उनके बच्चा नहीं हुआ। एक दिन पड़ोसन सकट चौथ की कहानी सुन रही थी तब साहूकारनी उसके पास जाकर बोली-तुम क्‍या कर रही हो? चोथ का ब्रत करने से क्‍या होता है? तब वह बोली कि अन्न, धन, सुहाग हो, बेटा हो। तब साहूकार की बहू बोली कि यदि मेरे गर्भ रह जाये तो सवा सेर तिलकुट करूंगी ओर चोथ का ब्रत भी करूंगी। उसके गर्भ रह गया तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाये तो में ढाई सेर का तिलकुट करूंगी। उसके लड़का भी हो गया तो वह बोली कि हे चौथ माता! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा तो सवा पांच सेर का तिलकुट करूंगी। जब बेटे का विवाह तय हो गया तो वह विवाह करने चले गए। तब चौथ बिन्दायक ने सोचा कि जब से इसके गर्भ रहा है तब से रोज तिलकुट बोलती है और अब तो बेटे का विवाह भी हो रहा है तब भी तिल का एक दाना भी नहीं दिया। अगर हम इसको प्रपंच नहीं दिखायें तो अपने को कलयुग में कोई भी नहीं मानेगा। हम इसके बेटे को फेरों में से ले लेंगे। जब उसने तीन फेरे लिए तो चोथ माता गरजती हुई आई। ओर उसको उठाकर पीपल पर बिठा दिया। हाहाकार मच गया और सब उसको ढूंढने लगे। परन्तु कहीं भी नहीं मिला। लड़कियां गनगौर पूजने गांव से बाहर दूब लेने जाती थीं।
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तब वह एक लड़की को देखकर कहता-‘आ मेरी अर्द्धब्याही!! यह बात सुनकर वह लड़की सूखकर कांटा हो गई। तब लड़की की मां बोली-मैं तुझे अच्छा खिलाती हूं, अच्छा पहनाती हूं फिर भी तू क्यों सूखती जा रही है? तो वह बोली कि जब मैं दूब लेने जाती हूं तो पीपल में से एक आदमी बोलता है कि आ मेरी अर्द्धव्याही। और उसने मेंहदी लगा रखी है, सेहरा बाध रखा है। तो उसकी माँ उठी और देखा कि वह तो उसका जमाई है। तब वह अपने जमाई से बोलीं कि यहा क्यों बैठा है। मेरी बेटी तो अर्द्धव्याही कर दी और अब क्‍या लेगा? तब बह बोला कि मेरी मां ने चोथ माता का तिलकुट बोला था उसने नहीं किया और चौथ माता नाराज हो गई और मेरे को यहां बिठा दिया। वह वहाँ गई और साहूकारनी से बोली कि तुमने सकट चोथ का कुछ बोला है क्या? तब साहूकारनी बोली-तिलकुट बोला था। फिर साहूकारनी बोली कि अगर मेरा बेटा आ जाये तो ढाई मन का तिलकुट करूंगी। गणेश चौथ राजी हो गई और उसके बेटे को फेरों में लाकर बिठा दिया। बेटे का विवाह हो गया तब उन लोगों ने ढाई मन का तिलकुट कर दिया और बोली कि हे चौथ माता! तेरे आशीर्वाद से मेरे बेटे बहू घर आए हैं जिससे में हमेशा तिलकुट करके ब्रत करूंगी। सारे नगर में ढिढोरा पिटवा दिया कि सब कोई तिलकुट करके चौथ का ज्रत करना। हे चोथ माता! जैसा उसके बहू बेटे को मिलवाया वैसा सबको मिलवाना। कहते सुनते सब परिवार का भला करना। जो चोथ का उद्यापन करे वे बिन्दायक जी की कहानी पढे। ( बिन्दायक जी की कहानी पीछे कई बार आ चुकी है।)
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