गोवस्त द्वादशी की कथा
पहले भारत में सुवर्णपुर नामक नगर में देव दानी राजा राज्य करता था। उसके सवत्स एक गाय और एक भेंस थी। राजा के दो रानियां थीं-सीता और गीता। सीता भैंस से सहेली के समान तथा गीता गाय से सहेली और बछड़े से पुत्र सा प्यार करती थी। एक दिन भेंस सीता से बोली-हे रानी! गाय बछड़ा होने से गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती हैं। सीता ने कहा यदि ऐसी बात है तो मैं सब ठीक कर लुंगी। सीता ने उसी दिन गाय के बछड़े को काटकर गेहूं के ढेर में गाड़ दिया। इसका किसी को पता न चला। राजा जब भोजन करने बेठा तब मांस की वर्षा होने लगी। चारों ओर महल के अन्दर मांस ओर खून दिखाई देने लगा। जो भोजन की थाली थी उसका सब भोजन मल मूत्र हो गया।
ऐसा देखकर राजा बहुत चिन्तित हुआ। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजन! तेरी रानी सीता ने गाय के बछडे को काटकर गेहूं के ढेर में दबा दिया है, इसी से सब कुछ हो रहा है। कल गोवत्स द्वादशी है इसलिए भैंस को राज्य से बाहर करके गाय और बछड़े की पूजा करो। दृध तथा कटे फल को नहीं खाना, इससे तेरा तप नष्ट हो जायेगा ओर बछड़ा भी जिन्दा हो जाएगा। सांयकाल जब गाय आईं तब राजा पूजा करने लगा। जैसे ही मन में बछड़े को याद किया वैसे ही बछड़ा गेहूं के ढेर निकलकर पास आ गया। यह देख राजा प्रसन्न हो गया। उसी समय मे अपने राज्य में आदेश दिया कि सभी लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत करें।