सेक्स एजुकेशन और भगवद गीता
आजकल हर जगह यही शोर है कि सेक्स एजुकेशन को पाठशालाओं / स्कूल-कॉलेज मे शुरु कर देना चाहिये। माता-पिता परेशान है जिस विषय पर कभी वो खुल कर बात नही करते, आज बच्चो से कैसे कर पायेंगे। क्या कोई उपाय है? समाज के वरिष्ठ लोगो को यह भी डर है कही यह विद्या पाकर कही युवा गलत रास्ता ना अपना ले, और भोग को जीवन का हिस्सा बना दें। पर सब कब तक चुप रह सकते है। अगर बच्चों को मार्गदर्शन नही दिया गया तो वह या तो “इंटरनेट” या दोस्तों से आधी अधूरी जानकारी हासिल करेंगे।
अखबारों मे आ रहे सेक्स कॉलम पर नजर डालिये, आज भी लोग कितने दिग्भ्रमित है। कई मामलों मे शादी के 20-25 साल बीत गये फिर भी सेक्स के बारे मे अज्ञानता है। उनके प्रश्न यही बताते है की उन्हे किसी ने मार्गदर्शन नही दिया, और वे आधी अधूरी जानकारी से अपने प्रश्नों को मन मे दबाये अपनी वैवाहिक जीवन यात्रा चला रहे है। क्या आने वाली पीढ़ियों के लिये यही जीवन हम चाहते है।
जरा देखते है काम/सेक्स के बारे मे हमारे धर्मग्रंथ क्या कहते है। भारतीय ग्रन्थों मे पुरुषार्थ के चार मार्ग बताये गये है| “धर्म” “अर्थ” “काम” “मोक्ष”। एक सम्पूर्ण जीवन के लिये चारों पुरुषार्थ जरूरी है।
धर्म सबसे महत्वपूर्ण है, जिसके बिना और कोई भी पुरुषार्थ संभव नही धर्म के बिना कमाया अर्थ बेकार है। भगवान ने गीता मे कहा है “मैं वो काम हूं जो धर्म के विरुद्ध नही है” जिन वैवाहिक सम्बंधो की धर्म सहमति देता है वही सही है। धर्म सम्मत मैथून पति पत्नी के बीच ही संभव है, किसी अन्य के साथ नहीं। चाहे जो नाम दे वो “पाप” है। रही बात मोक्ष कि तो वो धर्म के बिना संभव ही नहीं। अधर्म से अर्थ कमाया जा सकता है, अधर्म से काम-सम्बंध स्थापित हो सकता है, पर अधर्म के मार्ग पर कभी भी मोक्ष नही मिलता।
भगवद् गीता एक महान वैज्ञानिक धर्मग्रंथ है, जिसमे भगवान ने हर व्यक्ति को स्वयं को वैज्ञानिक तरीके से योग मे स्थापित करने का मार्ग बताया है। हमारे भीतर पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं, और पांच कामेन्द्रियां व एक इन्द्रिय मन है। नेत्र, नाक, जीभ, कान, और त्वचा ज्ञानेन्द्रियां हैं, और वाणी, हाथ, पांव, गुदा, लिंग [पुरुष] / योनि[स्त्री] यह पांच कामेन्द्रियां है। इस तरह हर मनुष्य को ग्यारह इन्द्रियों को वश मे करना होता है|
आज चारो तरह नजर घुमा कर देखिये, तकरीबन पूरा समाज “इन्द्रिय तृप्ति” के पीछे पड़ा है। आज की सारी आधुनिक बीमारियां चाहे मधुमेह, रक्तचाप, ह्रदयरोग हो या खतरनाक बीमारी एचाइवी/एड्स, यह सब इन्द्रियों के अति सेवन या दुरुपयोग से जुड़ी है। अगर जीभ पर नियंत्रण ना किया जाये, तामसिक चीजों का भोग किया जाये, तो बीमारियां तो आयेंगी। यही बात हर इन्द्रियों पर लागू होती है। अगर कामेच्छा पर नियत्रण ना किया जायेगा तो वो व्यक्ति एक दिन कुमार्ग पर बढता चला जायेगा।
गीता कहती है
विषया विनीव्र्तन्ते निरहरस्य देहिंन:|
यततो हीयापी कॉँतेय पुरुषस्य विपश्चित |
इंद्रिनयानी प्रमाथी नी हरन्ति पर्सभ मन:| 60||
वेद यह कहते है कि नारी शरीर मे सारे तीर्थ समाये है| उसकी योनि मे ब्रह्मा विराजते है जहां से वह जीवन देती है। उसके सीने मे विष्णु विराजते है जहां से वह पालन करती है, और उसके नेत्र मे शिव विराजते है जहां से वह विनाश कर सकती है। नारी का सम्मान करने वाले व्यक्ति के लिये किसी तीर्थ स्थान जाने की जरूरत नही है।
तंत्र यह कहता है कि हमे हर स्त्री के आगे सिर झुकाना चाहिये, चाहे वो 18 साल की युवा लड़की हो, या एक महीने की नवजात शिशु, या 80 साल की वृद्ध महिला, यह सब एक समान आदर के पात्र है। कभी भी किसी स्त्री से ऊंची आवाज़ मे बात नही करनी चाहिये, उन्हे अपशब्द/ गालियां नही देनी चाहिये, और कभी भी उन पर हाथ नही उठाना चाहिये, यह सारे अनुचित कार्य “सिद्धि” के मार्ग मे अवरोधक है|
वेदों के अनुसार सृष्टि की शुरूवात करोड़ो साल पहले नही हुई, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो सतत चली आ रही है और काम जीवन का अभिन्न अंग है, आखिरकार शिव शक्ति के सतत काम से सुष्टि आगे बढ़ती है। वैवाहिक जीवन मे पति पत्नी मे सेक्स के बारे मे कई भ्रांतिया पायी जाती है। अक्सर मेरिटल रेप की घटनायें होती हैं।
अगर पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति सजग हो और सन्मान का भाव हो, और मानसिक और शारारिक तौर से जुड़े तभी वो शादी-शुदा जीवन का आनन्द ले सकते है। पति-पत्नी दो अलग अलग शक्तियों, धुवों का प्रतिनिधत्व करते है। उनके सामीप्य मे आने से पत्नी मे रती जागृत होती है और पति मे वीर्य जागृत होता है। पर यह जरूरी है कि पत्नियों को देवी शक्ति के रूप मे जाना जाये, उसे भोग की वस्तु ना समझें। स्त्री देवी का जीवित रूप है, जो सर्वशक्ति जगत को चलाती है, भले ही वह स्त्री स्वयं इस बात को नही जानती हो। वो अपने आप मे एक यूनिवर्स है, उसका अपना व्यक्तित्त्व है।
समय आ गया है कि हम भगवद गीता का ज्ञान स्कूल – कॉलेज मे अनिवार्य कर दें। इससे पहले नयी पीढ़ी के अधिकतर युवा एचाइवी – एड्स की भेट चढ़ जायें, हम उन्हे अनियंत्रित इन्द्रियों तृप्ति के दुष्परिणामो के बारे मे जानकारी दें।