संत्त की क्षमा
एक संत कहीं जा रहे थे । एक दुष्ट व्यक्ति उन्हें गालियाँ देता हुआ उनके पीछे-पीछे चल रहा था। संत ने उससे कुछ कहा नहीं ।
वे चुपचाप चलते रहे किंतु जब कुछ घर दिखायी पड़ने लगे, तब वे खड़े हो गए। उन्होंने उस व्यक्ति से कहा…भाई ! तुम्हें जो कुछ कहना हो, यहीं कह लो। मैं खड़ा हूँ।
आगे उन घरों मेँ मुझसे सहानुभूति रखने वाले लोग रहते हैं वे तुम्हारी बातें सुनेंगे तो तुम्हें तंग कर सकते हैँ । दुष्ट व्यक्ति लज्जित होकर क्षमा माँगने लगा।