Search

संत स्वभाव-Saintly nature

संत स्वभाव
श्री विश्वनाथ पुरी वाराणसी मेँ एक साधु गङ्ग स्नान कर रहे थे । सहसा उनकी दृष्टि प्रवाह मेँ बहते एक
बिच्छू पर पडी । साधु ने दया करके उसे हाथ पर उठा लिया । बिच्छु तो बिच्छु ही ठहरा, उसकी पीठ पर से पानी नीचे गिरा और उसने अपना भयंकर डंक चला दिया । हाथ मेँ डंक लगने से हाथ काँप उठा और बिच्छु फिर पानी में गिर पड़ा ।

साधु के हाथ में भयानक पीड़ा प्रारम्भ हो गयी थी किंतु उन्होंने आगे झुककर फिर उस बिच्छु को हाथ पर उठा लिया और जल से बहार आने लगे । बिच्छु ने फिर डंक मारा, हाथ फिर कॉंपा और बिच्छु फिर हाथ से ज़ल में गिर पड़ा । साधु उसे उठाने फिर जल में आगे बढे । आस-पास और भी लोग स्नान कर रहे थे । साधु बार-बार बिच्छू  को उठाते थे और वह बार-बार वह उनके हाथ मे डंक मारता था ।
How to Be Sane, Spiritual, and Saintly - Watkins MIND BODY SPIRIT ...
Saintly Nature
लोग इस दृश्य की और आकर्षित हो गये । किसी ने कहा- यह दुष्ट प्राणी तो वैसे भी मार देने योग्य है । अपनी दुष्टता से ही यह मर रहा है तो आप इसे बचाने का निरर्थक प्रयत्न क्यों करते हैँ ? मरने दीजिये इसे । साधु ने बिच्छू को हाथ पर उठाते हुए कहा यह क्षुद्र प्राणी अपना डंक मारने का स्वभाव नहीं छोडता है तो मनुष्य होकर मैं अपना दया करने का स्वभाव कैसे छोड दूँ। पशूता से यदि मानवता श्रेष्ठ है तो मेरी मानवता अवश्य इसकी पशुता पर विजय पायेगी ।
पशुता सै मानवता, क्रूरता सै दया, तमोगुण सै सत्वगुण श्रेष्ठ है, बलवान् है, यह तो संदेरु सै परे हैं । साधु की  दया को बिजय पाना ही था । बिच्छू ने इस बार अपना डंक सीधा कर दिया । वह ऐसा शान्त हो गया जैसे डंक चलाना उसे आता ही न हो । -सुं० सिं०
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

CALLENDER
September 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
FOLLOW & SUBSCRIBE