सच्चा वीर
उस समय फ्रांस और आस्टिया में युद्ध चल रहा था । लाटूर आवर्न फ्रांस की ग्रेनेडियर सेना का सैनिक था । वह छुट्टी लेकर अपने घर गया था । छुट्टी समाप्त होने पर जब वह लौटने लगा तब मार्ग में पता लगा कि आंरेप्टया की एक सैनिक टुकडी पहाडी मानंसि शीघ्रतापूर्वक फ्रांस के एक छोटे से पर्वतीय दुर्ग की ओर बढी आ रही है । उस सैनिक ने निश्चय किया…’मैं शत्रु र पे पहले पहुँचकर दुर्ग-रक्ष क्रो न्को सावधान कर दूँगा और वहाँ सै एक सैनिक भेज दूँगा संदेश लेकर, जिसर पे समय पर सहायता के लिये सेना आ जाय।
वह दौड़ता हुआ किसी प्रकार उस पहाडी किले मेँ पहुँचा; किंतु वहाँ पहुँचकर उसने जो कुछ देखा, उससे बहुत दुख हुआ । दुर्ग का द्वार खुला हुआ था । उसके रक्षक शत्रु के आक्रमण का समाचार पाकर भाग गये थे । वे इतनी उतावली में भागे थे कि अपनी बंदूकें भी साथ नहीं ले गये थे । आवर्न ने झटपट अपना कर्तव्य निश्चित किया। उसने दुर्ग का द्वार बंद कर दिया । कुछ भोजन करके उसने सब बंदूकें एकत्र कों ।। आज के समान
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Real Soldier |
आबर्न ने सब बंदूकें भरीं और उम्हें स्थग्रन-स्थान पऱ जमाकर लगा दिया । प्रत्येक बंदूक के यास उसने बारूद और गोलियाँ रखीं । यह सब करके वह शत्रु की प्रतीक्षा करने लगा ।
आस्टियन सैनिक दुर्ग पर अचानक आक्रमण करना चाहते धे । रात्रि के अन्थकार मेँ वे जैसे ही आगे बढे किले के ऊपर से एक बंदूक का धडाका हुआ और उनका एक सैनिक लुढक गया । उस समय वे पीछे हट गये । सबेरा होने पर उनके सेना नायक ने व्यूह बनाकर किले पर आक्रमण किया; किंतु किले से आती गोलियों ने उस सेना के अनेक सैनिकों क्रो सुला दिया । गोलियाँ कभी एक और से, कभी दूसरी ओर से, इस प्रकार किले क्री बहुत-सी खिड़कियीं से आ रही थीं ।। किला ऊँचाई पर था । उस पर सीधे चढ़ जाना अत्यन्त कठिभ था । दिन भर संग्राम चलता रहा; किंतु अष्टियन सैनिक आगे नहीं बढ़ सके ।। उनके बहुत-से सैनिक मरे क्या घायल हुए ।।
उधर आवर्न दिनभर मेँ थककर चूर हो गया था’
कारतूस स्ने चलने वाली बंदूकें उस समय नहीं थीं । 1 वह समझता था कि कल वह इसी प्रकार किले को नही …
बचा सकेगा। भागे हुए सैनिकों ने फ्रांसीसी सेना को सावधान कर दिया होगा, यह भी वह अनुमान करता था । उसने संथ्या-समय पुकार कर आँरिट्रयन सेना के नायक से कहा…’ यदि दुर्गवासिंयों कौ फ्रांस के झंडे तथा हथियारो क्रो लेकर निकल जाने का वचन दो तो मैं कल सबेरे किला तुम्हें सोंप दूँगा ।’
सेनानायक ने आवर्न की माँग स्वीकार कर ली । प्रात८काल आँरिट्रयन सैनिक दो पंक्तियों में इस प्रकार खडे हो गये कि उनके मथ्य से एकडएक करके दुर्ग के सैनिक जा सकें । किले का द्वार खुला। हाथ मे फ्रांस का झंडा लिये कंधों पर ढेरों बंदूकें लादे आवर्न निकला । अछियन सेनानायक ने घूछा-दूसरे सैनिक तुम्हारे पीछे आ रहे हैं ?
आवर्न हँसकर चौला-‘मैं ही सैनिक हूँ मैँ ही दुर्गपाल हूँ और मैँ ही पूरी सेना हूँ ।’ उसके इस शीर्य सें आँरिट्रयन सेनानायक इतना प्रभावित हुआ कि उसने बंदूकें ले जाने क्रो उसे अपना एक मजदूर दिया तथा एक प्रशंसापत्र लिखकर उसे दिया । इस घटनाका समाचार जब नेपोलियन क्रो मिला तो उसने आवर्न क्रो फ्रांस के महान् ग्रेनेडियर क्री उपाधि दी । आवर्न की मृत्यु होने पर भी उसका नाम सैनिक-सूची से पृथक न किया जाय, यह आदेश दिया गया । उसकी मृत्यु के पश्चात् भी सैनिकों की उपस्थिति लेते समय सैनिक अधिकारी पहले उसका नाम लेकर पुकारता था और एक सैनिक नियमित रूप से उठकर उत्तर देता था…’वे युद्धभ्रूपि में अनन्त यश क्री शय्यापर सो रहे हैं ।