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विलक्षण दानवीरता कहानी महारथी कर्ण – Prodigious Charity Kids story

विलक्षण दानवीरता – Prodigious Charity

कर्ण का वास्तविक नाम तो वसुषेण था। माता के गर्भ से वसुषेण दिव्य कवच और कुण्डल पहिने उत्पन्न हुए थे। उनका यह कवच, जो उनके शरीर से चर्म की भाँति लगा था, अस्त्र-शस्त्रों से अभेद्य था और शरीर के साथ ही बढ़ता गया था। उनके कुण्डल अमृतसिक्त थे। उन कुण्डलों के कानों में रहते, उनकी मृत्यु सम्भव नहीं थी।

अर्जुन के प्रतिस्पर्धी थे कर्ण। सभी जानते थे कि युद्ध में अर्जुन की समता कर्ण ही कर सकते हैं। युद्ध अनिवार्य जान पड़ता था। पाण्डव-पक्ष में सबको कर्ण की चिन्ता थी। धर्मराज युश्रिषर को कर्ण के भय से बहुत बचैनी होती थी। अन्त में देवराज इंद्र  ने युधिष्टिर के पास संदेश भेजा – कर्ण की अजेयता समाप्त कर देने की युक्ति मैंने कर ली है, आप चिन्ता न करें।
Prodigious Charity story for kids in hindi
अचानक कर्ण ने रात्रि में स्वपन में एक तेजोमय ब्राह्मण को देखा। वे ब्राह्मण कह रहे थे -‘ वसुषेण! मैं तुमसे एक वचन माँगता हूँ। कोई ब्राह्मण तुमसे कवच कुण्डल माँगे तो देना मत!!
स्वपन में भी कर्ण चौंके -‘ आप कहते क्‍या हैं ? कोई ब्राह्मण मुझसे कुछ माँगे और मैं अस्वीकार कर दूँ?
स्वपन में ही ब्राह्मण ने कहा – बेटा! मैं तुम्हारा पिता सूर्य हूँ। देवराज इन्द्र तुम्हें ठग लेना चाहते हैं। मेरी बात मान लो।
कर्ण ने नम्नरतापूर्वक उत्तर दिया – आप मेरे पिता हैं, मेरे आराध्य हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप मुझे क्षमा करें। पर इन्द्र आये या और कोई, ब्राह्मण के रूप में मेरे पास कोई आयेगा, कुछ याचना करेगा तो प्राण के भय से कृपण की भाँति मैं उसे अस्वीकार नहीं कर सकूँगा।
सूर्य अदृश्य हो गये। अपने अकल्पनीय उदार पुत्र पर उन्हें गर्व था। दूसरे ही दिन देवराज ब्राह्मण के वेश में पधारे। कर्ण का आतिथ्य स्वीकार करके उन्होंने कहा -‘ मैं कुछ याचना करने आया हूँ, पर वचन दो कि दोगे।
कर्ण बोले -‘ भगवन्‌! वसुषेण ने कभी किसी ब्राह्मण को निराश नहीं किया है। बिना दिये भी यह वचन तो दिया ही हुआ है ब्राह्मण के लिये।
“कवच और कुण्डल, जो जन्म से तुम्हारे शरीर पर हैं।’ इन्द्र को यही माँगना था। कर्ण ने तलवार उठायी और शरीर की त्वचा अपने हाथों काटकर रक्त से भागे कुण्डल और कवच इन्द्र को दे दिये।
“तुम्हारा शरीर कुरूप नहीं होगा।’ इन्द्र ने आशीर्वाद दिया, किंतु देवराज किसी से दान लेकर उसे बरदान स्वरूप कुछ दिये बिना स्वर्ग जा नहीं सकते थे। इसलिये कर्ण को अपनी अमोघ शक्ति उन्होंने दी और कवच कुण्डल लेकर चले गये।
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