एक भक्तिमती वृद्धा श्रीराधा के बाल रूप का ध्यान कर रही थी। ध्यान में श्रीराधा ने काजल न लगवाने का हठ पकड़ लिया। वह भाँति-भाँति से उसको फुसला रही थी। वह कह रही थी कि ‘तू काजल लगाये बिना कन्हैया से खेलने जायगी तो वह तेरी हँसी उड़ायेगा।’ यह कहकर वह काजल लगाने की कोशिश करने लगी।
अब वह प्रतिदिन भगवान् के लिये भोजन बनाती और थाल में परोसकर अपने गोपाल को बुलाती । उसे अनुभव होता मानो गोपाल रोज आकर मैया का दिया भोजन बड़े चाव से खाता है। इस प्रकार तीस साल बीत गये। अब यह युवती बूढी हो गयी।
एक बार वह रामकृष्ण परमहंस के दर्शन करने गयी। गोपाल देर होने से भूखा न रह जाय, इसलिये उसने अपने
गोपाल के लीये थोडी-सी दाल और चावल साथ ले लिये।
सोचा, खिचड़ी बनाकर खिला दूँगी गोपाल को जब व्ह परमहंस जी के यहाँ पहुँची, तब उसने देखा कि बहुत बड़े-बड़े आदमी उनके चारों ओर बैठे है यह देखकर यह वापस जाने लगी । इसी समय स्वयं परमहंस जी अपने आसन से उछले और उसको बुला लाये तथा कहने लगे कि माता ! तुम मेरे लिए खिचडी बनाओ । मुझे बडी भूख लगी है ।
1. लोगों मे बात फैल गयी थी कि बुढिया को भगवान् के दर्शन होते हैं । अत. एक बार कुछ लोगों ने उससे भगवान् के दर्शन कराने के लिये प्रार्थना की। उसने भगवान् से कहा । किंतु उन्होंने ऐसा भाव प्रकट किया मानो वे दर्शन देना नहीं चाहते तथापि वृद्धा की बात का आदर करने के लिये वे एक क्षण के लिये वृद्धा के सामने से अदृश्य हो गये और कहीं से एक इत्र की शीशी ले आये। वृद्धा यह देखकर बोली कि यह इत्र तू कहाँ से चुरा लाया ? यह सुनते ही गोपाल ने शीशी फोड दी। लोगों को दर्शन तो नहीं हुए किंतु सभी को शीशी फूटने का शब्द सुनायी पड़ा तथा इत्र की सुगन्ध चारों ओर फैल गयी। उस वृद्धा की दशा-जब तक वह जीवित रही ऐसी ही रही।