शक्ति अपने अन्दर है
यदि तुम केवल सफलता का ही चिन्तन करोगे तो उसे प्राप्त कर लोगे। परन्तु इसे भौतिक कार्यों में ही अपना हृदय दे डालोगे तो तुम्हारी सफलता केवल कुछ समय के लिये होगी। अच्छी तरह याद रक्खो कि आत्मा की आज्ञा का पालन करना भी आवश्यक है। जब तक आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की बातों में समान उन्नति न हो लौकिक आनन्द भी प्राप्त नहीं हो सकता।
मनोविज्ञान की प्रतिज्ञा है कि तुम पाप को निकाल कर उसका स्थान पुण्य को दे देने में पूरी तरह समर्थ हो। यदि प्रेम की किरणें निकालोगे तो घृणा रूपी निशाचरी भाग जायेगी। जब कि मनुष्य एक बड़ी सीमा तक अपने जीवन को स्वर्गमय बना सकता है तो मैं नहीं कह सकती कि वह जानबूझ कर उसे बनाने का प्रयत्न क्यों करता है?
सारी शक्ति तुम्हारे भीतर से आती है और सारा सार अन्दर ही है। अर्थात् आत्मा के बाहर कुछ ढूंढ़ते फिरने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम्हारा भौतिक शरीर के भीतर सब शक्तियाँ भरी पड़ी हैं। तुम्हारा सूक्ष्म शरीर भी इसी के अन्दर है। जीवन तथा मृत्यु का, प्रेम का, सत्य का, शक्ति का और जो भी घटना कभी हुई है उसका सारा ज्ञान और आत्मा की सारी शिक्षाएं भूत काल की स्मृति में बन्द हैं, पूर्वजन्मों की स्मृति के ताले को खोलने की ही देर है कि तुम अपने सामने एक ऐसे ज्ञान का भण्डार देखोगे जिसकी कल्पना भी तुमने पहले न की होगी।
मैं कहती हूँ कि जो कुछ तुम बनना चाहो इच्छापूर्वक बन सकते हो और जो कुछ करना चाहो कर सकते हो। इसमें स्त्री पुरुष और आयु की कोई बाधा नहीं है। भूतकाल बीत गया समाप्त हो गया। अब वर्तमान और भविष्य तुम्हारे लिये मौजूद हैं। उन्हें जैसा चाहो बना सकते हो।