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मन का खेल। (एक सत्य कथा) – Mind game A true story.

मन का खेल। (एक सत्य कथा)

तिब्बत में एक फकीर था, मिलारेपा। उसके पास एक युवक आया। उसने कहा कि मुझे कोई मन्त्र सिद्धि करनी है, मुझे कोई शक्ति अर्जित करनी है, मुझे कोई मन्त्र दे दें। मिलारेपा ने कहा कि मन्त्र हमारे पास कहां? हम तो फकीर हैं। मन्त्र तो जादूगरों के पास होते हैं, मदारियों के पास होते हैं। तुम उनके पास जाओ। हमारे पास मन्त्र कहां? हमारे पास सिद्धि का क्या सम्बन्ध?

लेकिन वह युवक जितना ही उस साधु ने मना किया, उतना ही उस युवक को लगा कि जरूर यहां कुछ होना चाहिये। इसीलिये यह मन करता है। जितना साधु रोकने लगा औऱ इनकार करने लगा, उतना ही वह युवक उस साधु के पास जाने लगा। जो साधु डंडे से किन्ही को भगाते हैं, उनके पास बहुत भीड़ इकट्ठी हो जाती है। जो गली देते हैं और पत्थर मारते हैं उनके पास भीड़ और बढ़ जाती है। क्योंकि जरूर यहां कुछ होना चाहिये। नहीं तो यह क्यों पत्थर और डंडे मारेगा? लेकिन हमें पता नहीं है कि चाहे अखबार में खबर निकलवाकर बुलाया जाए या पत्थर मार कर, तरकीब एक ही है। प्रोपेगैंडा दोनों में एक ही है। और दूसरी तरकीब ज्यादा कनिंग से भरी है। जब पत्थर मार कर लोगों को भगाया जाए, तो लोगों को यह भी ख्याल में नहीं आता कि हमें बुलाया जा रहा है। लेकिन पत्थर मार कर भी बुलाने की विधि है। और तब आदमी आता भी है और उसे ख्याल में भी नहीं आता कि मैं बुलाया गया।

उस युवक ने समझा कि यह कुछ छिपाना चाहता है। इसलिये वह और रोज आने लगा। आखिर में मिलारेपा परेशान हो गया। तब एक दिन उसने एक कागज पर एक मन्त्र लिख कर दे दिया। कहा इसे ले जाओ और आज अमावस्या की रात है तो अंधेरे में इसे पांच बार पढ़ लेना। बस पांच बार तुमने पढ़ लिया कि सिद्धि हो जाएगी। फिर तुम जो भी चाहते हो तुम कर सकोगे।
वह युवक भागा। उसने धन्यवाद भी नहीं दिया। वह सीढियां उतर भी नहीं पाया था मन्दिर की, कि मिलारेपा ने कहा कि मेरे मित्र एक बात मैं बताना भूल गया।एक कंडीशन भी है, एक शर्त भी है कि जब उस मन्त्र को पढ़ो तो बन्दर का स्मरण नहीं आना चाहिये। उस युवक ने कहा बेफिक्र रहिये। आज तक जिंदगी में कभी नहीं आया। कोई आने का कारण नहीं है। और पांच ही बरतो पढ़ना है कोई हर्ज नहीं है।
लेकिन भूल हो गई उससे। वह पूरी सीढियां उतर भी नहीं पाया था कि बन्दर आना शुरू हो गए। वह बहुत घबराया। आंख बंद करता है तो नबदर हैं। बाहर देखता है तो जहां बन्दर नहीं हैं वहां भी बन्दर दिखाई पड़ते हैं। मालुम होता है कि बन्दर हैं। रात है, वृक्षों पर हलचल होती है तो लगता है कि बन्दर हैं। घर पहुंचा, बहुत परेशान हुआ कि ये मामला क्या है। यह आजतक मुझे बन्दर कभी ख्याल में भी नहीं आए। मेरा कोई नाता -रिश्ता बंदरों से नहीं रहा। कोई पहचान नहीं रही।
घर पहुंचा, स्नान किया। लेकिन स्नान करता हज रहा है और बन्दर साथ हैं। एक ही तरफ ख्याल रह गया है—बंदरों की तरफ। फिर मन्त्र पढ़ने बैठता है। हाथ में कागज लेता है,आँखें बंद करता है और बंदरों की भीड़ उसे चिढ़ा रही है। भीतर बन्दर मौजूद हैं। वह बहुत घबड़ा गया। रात भर उसने कोशिश की। सब भांति करवट ली। इस भांति बैठा, उस पद्मासन में बैठा, इस सिद्धासन में बैठा। भगवान के नाम लिये, हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाया, रोया कि पांच मिनट के लिये केवल इन बंदरों से छुटकारा दिला दो। लेकिन वे बन्दर थे कि उस का पीछा छोड़ने को राजी नहीं हुए।
सुबह तक वह बिल्कुल पागल हो उठा। घबड़ा गया और समझ गया कि यह मामला हल होने का नहीं है। यह सिद्धि नहीं हो सकती। में समझता था, बड़ी सरल है,साधु होंशियार है। उसने शर्तें कठिन लगा दी। पागल है लेकिन–अगर बंदरों के कारण रुकावट होती थी तो कम से कम बंदरों के नाम न लेता तो शायद यह मंत्र सिद्ध हो जाता।
लेकिन सुबह वह साधु के पास गया रोता हुआ और उसने कहा वापस ले ले अपना मन्त्र। बड़ी गलती की है आपने। अगर बन्दर ही इसकी रुकावट थे इस मंत्र में, तो कृपा करके कल ना कहते, आज कह देते तो कोई हर्ज था आपको? मुझे कभी बन्दर याद भी नहीं आए थे। लेकिन रात भर बंदरों ने मेरा पीछा किया। अब अगले जन्म में आऊंगा, फिर हो सकता है कि यह मंत्र सिद्ध हो सके। क्योंकि इस जन्म में तो यह मंत्र और बन्दर संयुक्त हो गए हैं। अब इन से छुटकारा सम्भव नहीं है।
यह जो बन्दर संयुक्त हो गए मन्त्र के साथ, यह कैसे संयुक्त हो गए?उसके मन ने आग्रह किया कि बन्दर नहीं होने चाहिये।और बन्दर हो गए। उसके मन ने बंदरों से छूटना चाहा, और बन्दर मौजूद हो गए। उसका मन बंदरों से बचना चाहा ओर बन्दर आ गए ।
निषेध आकर्षण है,इनकार आमंत्रण है,रोकना बुलाना है।
हमारे चित्त की जो इतनी रुग्ण— दशा हो गई है। वह इस सीधे से शुत्र को न समझने से हो गई है। क्रोध को हम नहीं चाहते कि आए और फिर क्रोध बन्दर बन जाता है और आने लगता है। काम को हम नहीं चाहते हैं
कि आए और फिर वह आ जाता है ओर चित्त को पकड़ लेता है।। 

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