चुप रहने का जादू
बहुत बोलते हैं वह। एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने ठान लिया कि सप्ताह में एक दिन चुप रहेंगे। कोई कुछ भी कहेगा, चुप रहेंगे। आसान नहीं था। अभ्यास जारी रखा और फिर सफल भी हुए। पाया कि चुप रहना जादुई असर डालने वाला है। आध्यात्मिक तौर पर सच ही कहा गया है कि यह सच के करीब ले जाने वाली अवस्था है। इस अवस्था में आप खुद के भीतर पहले से कहीं बेहतर रूप में उतर पाते हैं। आचार्य विनोबा भावे कहते थे- ‘मौन और एकांत आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं।’ मौन के बाहर की दुनिया मन की दुनिया है, जबकि मौन की दुनिया आत्मा और रहस्य की दुनिया है। संसार में जितने भी तत्व-ज्ञानी हुए हैं, सभी चुप रहने को एक मंत्र की तरह अपनाते हैं।
बुद्ध ने वर्षों तरह-तरह के उपाय किए, किंतु सत्य नहीं मिला। अंतत: वह मौन के सरोवर में डूबे और सत्य का मोती पा लिया। बाद में बुद्ध के अनुयायियों ने उनसे परमात्मा के संबंध में जब भी प्रश्न किए, उन्हें मौन रहते पाया। यह मौन ही उनका उत्तर होता।
महात्मा गांधी भी मौन के जादू से खासे प्रभावित थे। सोमवार उनके आश्रम में ‘मौनवार’ के नाम से जाना जाता था। इस दिन सारे आश्रमवासी मौन रहते। गांधी के लिए मौन एक प्रार्थना थी। यह उन तक अध्यात्मिक सुख लेकर आता था। हम जिस दौड़-भाग का जीवन जी रहे हैं, वहां भी इसकी महत्ता निर्विवाद है। चिंतक बेकन ने इसे व्यस्तता के बीच की निद्रा माना है, जो ज्ञान में नई स्फूर्ति पैदा करता है। मौन की जादुई आभा के कारण कई जगह अब सामूहिक मौन के कैंप लग रहे हैं। किंतु ये कैंप बाजार के सच हैं, हमारे नहीं। हमें तो अपने-अपने तरीके से अपने एकांत में डूबने की कला सीखनी चाहिए। इसकी पहली सीढ़ी यही है कि बेवजह प्रतिक्रिया न दें। चुप रहना सीखें। खुद में उतरना सीखें। बोलें तभी, जब जरूरी हो और बोल ऐसे हों, जिसे सुंदर कहा जा सके।