खिचड़ी भजन राग देश तीन ताल-८४
जंतन बिन मिरंगी खेत उजारा। टेक
पांच मिरगा पच्चीस मिरगानी,
तामें तीन शिकारा
अपने अपने रस के भीगी,
चुग रहे न्यारा न्यारा।
उटिके झुण्ड मृगा के रोके बैठे खेत मझारा।
हो हो करति बालक भारी मुख बाये रखवारा।
मारे मारे टरे नहीं टारे बिडरे नाहीं बिडारा ।
अति ही प्रपंच महा सुखदाई,
जंतन बिन मिरंगी खेत उजारा। टेक
पांच मिरगा पच्चीस मिरगानी,
तामें तीन शिकारा
अपने अपने रस के भीगी,
चुग रहे न्यारा न्यारा।
उटिके झुण्ड मृगा के रोके बैठे खेत मझारा।
हो हो करति बालक भारी मुख बाये रखवारा।
मारे मारे टरे नहीं टारे बिडरे नाहीं बिडारा ।
अति ही प्रपंच महा सुखदाई,
तीन लोक पचिहार।
ज्ञान का भूला सुरति का चूका,
मुरु का शब्द रखवार।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
बिरले मले सम्हार।
ज्ञान का भूला सुरति का चूका,
मुरु का शब्द रखवार।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
बिरले मले सम्हार।