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जाट की अकल

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जाट की अकल

हरियाणा प्रांत में एक जाट एक दिन साग लेने के लिये एक रुपया लेकर गुड़गांव शहर को चल दिया। जब शहर में  पहुचा तो उसने बाजार में एक हलवाई की दुकान पर तरह तरह की मिठाइयों के थालों को देखा।  मिठाई देखकर उसके मन में मिठाई खाने की इच्छा पैदा हो गई।  उसने हलवाई से पूछा–मिठाई का क्‍या भाव है?
हलवाई ने बताया–दो आने पाव। जाट बोला-भाई! पाव पूर्व का हिसाब नहीं हु सै, न्यू कह पेटभर खाने के कितने पैसे देने पड़ेंगे। हलवाई ने बताया – एक रुपया। जाट ने सोचा – साग तो फिर भी ले लिया जायेगा, हु आज तो छिक कर मिठाई खाले ऊँ सूं।
यह सोचकर वह मिठाई खाने लगा। जब उसने पाँच सेर वजन के थाल की मिठाई साफ कर दी तो ऊपर की ओर मुख करके देखने लगा। हलवाई ने झुंझलाकर कहा – अबे! अब क्‍या देखता है? एक थाल तो चट कर गया। जाट बोला-भाई! धोक्या हो सै, ६ रुपय्या, कलदार ना दूँगा। अभी तो मेरा आधा पेट भी नहीं भरा सै। जाट की बात सुनकर हलवाई क्रोध में भरकर बोला- चल-चल? तेरे खाने के लिए मेरे पास मिठाई नहीं है।
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 हलवाई की बात सुनकर मूंछों पर हाथ फेरता हुआ जाट जैसे ही वहाँ से उठकर चलने लगा तो हलवाई का बेटा दुकान से नीचे उतरकर उसका हाथ पकड़कर बोला-जायेगा कहाँ? पहले मिठाई के पैसे निकाल, फिर कहीं जाने की सोचना। जाट बोला – मिठाई छिक कर खिला दे और रुपया ले ले। उधर हलवाई मिठाई के दाम माँग रहा था और इधर जाट देवता बिना पेटभर मिठाई खाये एक दाम भी देने को तैयार नहीं था।
अन्त में जब जाट ने देखा कि यहाँ पर तेरा बस नहीं चल सकता तो हलवाई के लड़के से हाथ छुड़ाकर वहाँ से वह गाँव की ओर भागने लगा। हलवाई भी उसे बिना पैसे दिये जाता देखकर उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। जाट ने देखा कि हलवाई उसके पीछे-पीछे दौड़ रहा है तो भी उसने हलवाई की चिन्ता नहीं की। जाट अभी शहर से दो-तीन मील की दूरी पर पहुँचा होगा कि उसे एक सिपाही मिल गया।
उसने जाट से पूछा – तू कौन है? और कौन से गाँव जा रहा है? जाट ने कहा –  जाट सू और यहाँ से दस बारह कोस  पर एक गाँव से वहाँ जा रहा सूं। सिपाही ने कहा – मैंने सुना है कि जाट बड़े अकलमन्द होते हैं। इसलिए कोई मार्ग पर छ: सात कोस की दूरी पर थाना है, वहाँ मैं शीघ्र पहुँच जाना चाहता हूँ। वहाँ मैं जल्दी नहीं पहुँचूँगा तो मेरे ऊपर जुर्माना हो जायेगा।
 जाट बोला-भाई ! मैं तो इसकी कोई तरकीब वरकीब जाणता नहीं सूं। तू पुलिस में रह्माणा से सो तू ही जाणता होगा। इस पर भी जब सिपाही ने शीघ्र चलने के लिए बार-बार कहा तो जाट ने पैर में से जूती निकाल कर । सिपाही के सिर में ऐसी जोर से मारी कि सिपाही के गुस्से का ठिकाना न रहा। । इसके बाद जाट देवता हवा हो गया और सिपाही भी।  हाथों में जूतियाँ पकड़े उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। अब आगे-आगे जाट हिरन की तरह छलांग भरता हुआ चला जा रहा था
और उसके पीछे-पीछे सिपाही उसकी एड़ दबाते। भागता हुआ चला आ रहा था। जाट को भागते हुए मार्ग में एक महाजन ऊँट पर तेल के पीपे लादे हुए आता दिखाई दिया। जाट ने पूछा-भाई!  ऊँट में के लाद रखाया से। उत्तर मिला ”जहर ”। यह उत्तर  सुन कर जाट ने दो चार लठ मार कर पीपों को फोड़ डाला।  जाट तेल को बखेर कर आगे को चल दिया। अपने तेल की यह दुर्दशा देखकर महाजन के क्रोध की कोई सीमा न रही।
वह भी ऊँट को लेकर जाट के पीछे-पीछे दौड़ पड़ा । यद्यपि महाजन के पास ऊँट था परन्तु फिर भी वह ढांच पलाण और फूटे टूटे पीपों के साथ होने से वह जाट को पकड़ने में असमर्थ रहा । जाट को भागता देखकर एक स्त्री जिसका लड़का रो रहा था कहने लगी -ओ जाने वाले। भाई! मेरा लड़का रो रहा है। इसलिए इसके कान पाड़ते  जाना। स्त्री की बात सुनकर जाट जैसे ही लड़के के पास  पहुँचा तो लड़के के दोनों कानों को उखाड़ कर उसे सौंपते हुए आगे बढ़ गया।
कानों को उखाड़ लेने के बाद बुरी तरह लड़के को चिल्लाते हुए देखकर स्त्री का मन अग्नि की तरह जलने लगा और वह गालियाँ देती हुई उस जाट के पीछे दौड़ने लगी। थोड़ी देर बाद जाट सिपाही के बताये हुए थाने में पहुँच गया तथा थोड़ी देर बाद ही सिपाही भी वहाँ पहुँच गया। जाट को वहाँ बैठे हुए देखकर उसने दरोगा से कहा-श्रीमान  जी!
इस जाट ने मेरे सिर पर पाँच जूते मारे हैं। इसलिए इसे हिरासत में ले लीजिए। दरोगा जी की आज्ञा से मुंशी ने रपट पल शुरू कर दी। पूछताछ चल ही रही थी कि वहाँ पर महाजन और हलवाई भी एक के बाद एक थाने में आ पहुँचे। सब जाट के विरुद्ध रपट दर्ज कराने लगे। सबकी रपटें दर्ज करने के बाद मुंशी ने जाट से पूछा-क्यों बे! एक ही दिन में इतने अपराध कर देना, तूने क्‍या समझ रखा है, तनिक ठहर तुझे अभी इसका मजा चखाता हूँ।
जाट बोला–मुंशी जी! सजा थारी मरजी में आवे सो दे देणा परन्तु यह तो बताओ किसी न्याय भाव भी सैक नहीं। पहिले इन रपोट दीणा वालों से न्‍यों तो पूछा ले इसमें कसूर किसा सै। पीछे ही किसी सजा की बात करणा। मुंशी ने कहा – फिर तू ही बता दर असल क्या बात है?
जाट बोला – मुंशी जी! सारा किस्सा मोटी-मोटी बातों में । इस तरह से कि मैं साग लावण शहर में डिगर गया जब शहर में पहुँचा तो यह हलवाई मिठाई सजाये बैठा पाया। मैंने इससे भाव पूछा तो म्हारा सौदा एक रुपये में छिककर मिठाई खाने तय हुआ । जब मैं एक थाल की मिठाई खाकर और मिठाई माँगने लगा, तो इसने गालियाँ देनी प्रारम्भ कर दीं।
मैंने शहर में बोलना ठीक नहीं समझा और चुपचाप अपने घर को चल पड़ा। अब आप ही बताओ इसमें मेरी कसूर से कि इस हलवाई का?
जाट की बात सुनकर मुंशी ने कहा-क्यों बे! हलवाई के बच्चे! जो यह जाट कह रहा है, वह ठीक है। हलवाई ने  कहा – हुजूर! बात तो यही है। मुंशी ने झुंझलाते हुए कहा – यदि यह बात है तो यहाँ तक इसके पीछे-पीछे क्‍यों आया? चल हट, नहीं तो तुझे सींकचों में बन्द कर दूँगा। हलवाई को धमकाकर मुंशी ने जाट से कहा – आगे  क्‍या हुआ? जाट बोला–हुजूर! मैं रास्ते में जब चाल्या हुआ आ रहा था,
तब आपका यह सिपाही मिल्या और थाणे में जल्दी पहुँचण के लिए मेरे से तरकीब पूछो लग्या। पहले तो मैं नाटता रहा । पर जब यो नहीं मान्या तो इसके सिर में पाँच जूते मन्नै मारणे ही पड़े । अब आप इसी से धर्म उठवाकर पूछो – कि यह कितनी जल्दी थाने पहुँच्या। अब हुजूर आप ही  बतलावें कि इससे अच्छा और मैं के तरकीब जाण सूं।
यदि मैं इसके सिर में जूते नहीं मारता तो यह पैदल तीन काल में भी इतनी शीघ्रता से थाने में नहीं पहुँच सकता था। मुंशी जी ने सिपाही से जाट की बात सुनकर पूछा तो उसने जाट के ब्यान को स्वीकार कर लिया।
तब मुंशी ने जाट से आगे बढ़ने के लिए कहा। वह इस प्रकार बोला- हुजूर! इसके बाद जब मैं महाजन के पास पहुँचा तो पीपों में ये किसी चीज को घाल्या हुआ जा रहा था। जब मैंने इससे पूछा कि पीपों में क्या भर रखा है, तो इसने उत्तर दिया कि इनमें जहर है। हुजूर में समझा जब माशा रत्तीभर जहर मे आदमी जिन्दा नहीं बचता तो इतने जहर से न मालूम कितने मारे जायेंगे। बस यही सोचकर मैंने इसके पीप॑ फोड़ दिये और इसमें जो जहर भरा हुआ था उसे जमीन में बहा दिया।
मुंशी ने महाजन से पूछा – क्या जाट ठीक कह रहा है। महाजन ने कहा – हुजूर! यह सच कह रहा है परन्तु उनमें , सरसों का तेल भरा था। मुंशी ने कहा – तो तुमने इसे तेल ही क्‍यों नहीं बताया। इसे क्या पता था कि पीपों में क्या भरा  है? इसने तो तुम्हारे कहने पर जहर ही समझा और पीपों को फोड़ डाला।  इसमें इसकी कोई गलती नहीं है। जाओ, अपने घर जाओ नहीं तो सजा भुगतोगे।
अब मुंशी के कहने पर जाट ने पुन: बताया कि हुजूर! जब में इस औरत के आगे से निकल रहा था तो इसने मुझसे  कहा था कि मेरे बालक के कान फाड़ता जा इसकी बात सुनकर मैंने इसके बालक के कान उखाड़ कर इसे दे दिये। अब आप ही बताओ, इसमें मेरा क्या कसूर है। जाट की बात सुनकर और उसे सच्चा समझ कर उसने स्त्री को धमकाकर बाहर निकाल दिया। इसके बाद मुंशी ने जाट से  कहा–माना इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, परन्तु सिपाही के सिर पर जूते मारने से सरकार का अपमान हुआ है इसलिए तुम पर आठ आने जुर्माना किया जाता है।
मुंशी की यह बात सुनकर जाट ने मुंशी जी के सिर पर भी पाँच जूते मारकर कहा–हुजूर! यह लीजिए एक रुपया। आठ आने का जुर्माना सिपाही के पाँच जूते मारने के और आठ आने आपको पाँच जूते मारने के एवज में। यह रुपया खजाने में जमा करा देना। इसके बाद सिपाहियों ने जाट को धक्के मारकर थाने से बाहर निकाल दिया।
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