आतिथ्य धर्म
भारतवासियों के समान ही अरब भी अतिथि का सम्मान करने में अपना गौरव मानते हैं । अतिथि का स्वागत-सत्कार वहाँ कर्तव्य समझा जाता है।
अरब लोगो की शूरता प्रसिद्ध है और अपने शत्रु को तो वे क्षमा करना जानते ही नहीं। एक व्यक्ति ने एक अरब के पुत्र को मार दिया था। वह अरब अपने पुत्रधाती के खून का प्यासा हो रहा था और सदा उसकी खोज में रहता था। संयोग ऐसा बना कि वही व्यक्ति किसी यात्रा में निकला। मार्ग में ही उसे लू लग गयी। ज्वर की पीड़ा से व्याकुल किसी प्रकार गिरता-पडता वह जो सबसे पास तम्बू मिला वहाँ तक पहुँचा। त्तम्बू के दरवाजे त्तक पहुँचते पहुँचते तो वह गिर पड़ा और बेहोश हो गया।
तम्बू के मालिक ने अपने दरवाजे पर गिरे बेहोश अतिथि को उठाकर भीतर लिटा दिया। वह उसकी सेवा में लग गया । रात-दिन जागकर भली प्रकार उसने बीमार की सेवा की। रोगी की मूर्छा दूर हुईं किंतु उसे स्वस्थ होने में कईं दिन लगे। उस तम्बू के स्वामी अरब ने उसकी सेवा सत्कार में कही कोई कमी नहीं होने दी।
रोगी जब स्वस्थ हो गया, सबल हो गया और इस योग्य हो गया कि लम्बी यात्रा कर सके, तब उस अरब ने कहा-तुम मेरा सबसे बलवान् ऊँट ले लो और जितनी शीघ्रता से जा सको, यहॉ से दूर चले जाओ । मेरा आतिथ्य-सत्कार पूरा हो गया । मैंने अपना एक कर्तव्य ठीक पुरा किया है। परंतु तुमने मेरे पुत्र की हत्या की है, तुमसे पुत्र का बदला लेना मेरा दूसरा कर्तव्य है । मैं ठीक दो घंटे बाद अपने दूसरे कर्तव्य के पालन के लिये तुम्हारा पीछा करनेवाला हूँ।