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हिंदी कहानी – दूषित अन्न का प्रभाव – Hindi Story – Effects of Contaminated Food

दूषित अन्न का प्रभाव

महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था। धर्मराज युधिष्टिर एकच्छत्र सम्राट्‌ हो गये थे। श्रीकृष्णचन्द्र की सम्मति से रानी द्रौपदी तथा अपने भाइयों के साथ वे युद्धभूमि में शरशय्या पर पड़े प्राण त्याग के लिये सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते परम धर्मज्ञ भीष्मपितामह के समीप आये थे। युधिष्टिर के पूछने पर भीष्म पितामह उन्हें वर्ण, आश्रम तथा राजा-प्रजा आदि के विभिन्न धर्मो का उपदेश कर रहे थे। यह धर्मोपदेश चल ही रहा था कि रानी द्रौपदी को हँसी आ गयी। . “बेटी! तू हँसी क्‍यों ?’ पितामह ने उपदेश बीच में ही रोककर पूछा। द्रौपदी जी ने संकुचित होकर कहा -मुझसे भूल हुईं। पितामह मुझे क्षमा करें। पितामह का इससे संतोष होना नहीं था। बे बोले“बेटी। कोई भी शीलवती कुलवधू गुरुजनों के सम्मुख अकारण नहीं हँसती। तू गुणवती है, सुशीला है। तेरी हँसी अकारण हो नहीं सकती।

Hindi Story contaminated Food
संकोच छोड़कर तू अपने हँसने का कारण बता। हाथ जोड़कर द्रौपदी जी बोलीं – दादाजी! यह बहुत ही अभद्रता की बात है। किंतु आप आज्ञा देते हैं तो कहनी पड़ेगी। आपकी आज्ञा मैं टाल नहीं सकती। आप धर्मोपदेश कर रहे थे तो मेरे मन में यह बात आयी कि आज तो आप धर्म की ऐसी उत्तम व्याख्या कर रहे हैं। किंतु कौरवों की सभा में जब दु:शासन मुझे निवस्त्र करने लगा था, तब आपका यह धर्मज्ञान कहाँ चला गया था। मुझे लगा कि यह धर्म का ज्ञान आपने पीछे सीखा है। मन में यह बात आते ही मुझे हँसी आ गयी, आप मुझे क्षमा करें।’

पितामह ने शान्तिपूर्वक समझाया – बेटी! इसमें क्षमा करने की कोई बात नहीं है। मुझे धर्मज्ञान तो उस समय भी था। परंतु दुर्योधन का अन्यायपूर्ण अन्न खाने से मेरी बुद्धि मलिन हो गयी थी। इसी से उस द्युत सभा में धर्म का ठीक निर्णय करने मैं असमर्थ हो गया था। अब अर्जुन के बाणें के लगने से मेरे शरीर का रक्त निकल गया है। दृषित अन्न बने रक्त के शरीर से बाहर निकल जाने के कारण अब मेरी बुद्धि शुद्ध हो गयी है; इससे इस समय मैं धर्म का तत्त्व ठीक समझता हूँ और उसका विवेचन कर रहा हूँ! –सु० सिं०
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