एक बहिरा मनुष्य नियमपूर्वक कथा सुनने जाया करता था । जब कथा वाचक जी को पता लगा कि वह बहिरा है और कथा का एक शब्द नहीं सुन पाता तब उन्होंने उसके कान के पास मुख ले जाकर पुकार कर पूछा – आपको तो कथा सुनायी पड़ती नहीं, फिर आप प्रतिदिन यहाँ क्यों आते हैँ ?बहिरा मनुष्य बोला…यहाँ भगवान की कथा होती है। मैँ उसे सुन पाऊँ या नहीं, अन्यत्र बैठने से यहा कि पवित्र वातावरण मेँ बैठने का लाभ तो मुझें होता ही है।
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परंतु मुख्य बात तो यह है कि मेरा भी अनुकरण करने वाले कुछ लोग हैँ । मेरे बच्चे और सेवक, मेरे घर के दूसरे सदस्य मेरे आचरण से ही प्रेरणा प्राप्त करते हैं । मैँ कथा मेँ इसीलिये नियमपूर्वक आता हूँ कि इससे उनके चित्त में भगवत कथा के प्रति रुचि, श्रद्धा, महत्त्वबुद्धि तथा उत्कगठा हो । तथा मैं आकर बैठता हूँ इससे कथा के शब्दों से मेरे अङ्ग ने केब्ब स्पर्श तो होता ही है । – – सु० सिं०