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विवाह में भी त्याग Even renunciation in marriage.

विवाह में भी त्याग
श्री गोंदवलेकर महाराज की पहली पत्नी का देहान्त हो चुका था। दो-चार माह के बाद उनकी माँ ने उन्हें दूसरी
शादी करने पर मजबूर किया। मातृभक्ति के कारण महाराज ना नहीं कह सके; परंतु उन्होंने माँ से एक शर्त मंजूर
करा ली कि वे स्वयं अपनी दूसरी पत्नी को पसंद करेंगे। शर्त पर ही क्यों न हो, किंतु महाराज विवाह करने को
राजी तो हो गये। घर के सब लोग इससे प्रसन्न थे।
घर में विवाह की बातचीत चलने लगी। गाँव के और दूसरे गाँवों के लोग अपनी-अपनी विवाह योग्य कन्याओं को
लेकर महाराज के पसंद के लिये गोंदावले आने लगे परंतु महाराज ने सभी पर अस्वीकृति की मुहर लगाना शुरू कर दिया। लोगों को चिन्ता हुई कि महाराज शादी करेंगे या नहीं।
Even renunciation in marriage
महाराज की चिन्ता तो अलग ही थी। वे पूरे अन्तर्ज्ञानी थे। आटपाडी गाँव के निवासी श्री सखाराम पंत देशपांडे नामक गरीब ब्राह्मण अपनी नेत्रहीन कन्या के विवाह की चिन्ता में रात-दिन डूबा रहता है, यह जानकर महाराज
दयार्द्र हो गये। वे आटपाडी गये और ब्राह्मण से मिलकर उन्होंने कहा कि ‘मैं एक गोसावी हूँ, आप चाहें तो अपनी कन्या का विवाह मेरे साथ कर सकते हैं। रोटी के एक टुकड़े को तरसने वाला मानो बढ़िया पक्वान्न पा गया। ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह महाराज से कर दिया।
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