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सम-वितरण

विभज्य भुज्ञते सन्‍तो भक्ष्यं प्राप्प सहाग्निना। चतुरश्षमसान्‌ कृत्वा त॑ सोममृभव: पपुः:॥ ‘ 

सुधन्वाके पुत्र ऋभु, विभु और वाज त्वष्टाके विशेष ! कृपापात्र थे। त्वष्टाने उन्हें अपनी समस्त विद्याओंसे सम्पन्न _॥ कर दिया। उनके सत्कर्मकी चर्चा देवोंमें प्राय: होती रहती थी। उन्होंने बृहस्पतिको अमृत तथा अश्विनीकुमारोंको दिव्य ह रथ और इन्द्रको वाहनसे संतुष्ट कर उनकी प्रसन्नता प्राप्त की थी। बेदमन्त्रोंसे वे देवोंका समय-समयपर आवाहन करते रहते थे। देवोंको सोमका भाग देकर वे अपने सत्कर्मसे . देवत्वकी ओर बढ़ रहे थे। व ३ 9८ ऋभुओंने त्वष्टानिर्मित सोमपानका आयोजन किया। सामवेदके सरस मन्त्रोच्चारणसे उन्होंने सोमाभिषव प्रारम्भकर उसे चमस * में रखा ही था कि सहसा उनन्‍्हींके आकारप्रकार, रूप-रंग और वयसके एक प्राणी दीख पड़े। ऋभुओंको बड़ा आश्चर्य हुआ। “चमसके चार भाग करने चाहिये।’ ज्येष्ठ पुत्र ऋभुने आदेश दिया। उनकी आज्ञाका तत्क्षण पालन हुआ बिम्बा और बाजके द्वारा। | अतिथिका सत्कार करना हमारा परम धर्म है, | आप कोई भी हों, हमलोगोंने आपको सम भागका 1 अधिकारी माना है।’ ऋभुओंने सोमपानके लिये अज्ञात पुरुषसे प्रार्थना की। ‘देवगण आपसे प्रसन्न हैं, ऋभुओ! मुझे इन्द्रने ॥ आपकी परीक्षाके लिये भेजा था। आपलोग संत हैं। आपने अतिथि-धर्मका पालन करके अपना गोत्र पवित्र कर लिया।* अग्नि प्रकट हो गये। उन्होंने सोमका चौथा । भाग ग्रहण किया। इन्द्रने भी सोमका भाग प्राप्त किया। प्रजापतिने उन्हें अमरता प्रदान की। वे अपने शुभकर्मसे देवता हो गये। 
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