परिवर्तन है नवजीवन
जो सूर्य उदित होता पूरब से‚ पश्चिम में अस्त क्यों होता है ?
क्यों सृष्टि की हर सर्जना का ‚ संग संग विसर्जन होता है ?
क्या फूल खिलते बहारों में ‚ बस पतझड़ में बिखर जाने के लिए?
क्या नदियां इठलाती‚ बलखाती बहती‚ केवल सागर से आलिगंन के लिये?
क्या धुरी पे पृथ्वी करे परिक्रमा ‚ रितुओं का क्रम बनाने को?
और रितुएं अदल–बदल कर आएं , जीवन में परिवर्तन लाने को ।
ऐसे परिवर्तनशील जीवन में ‚ क्यों कहीं ठहर जाता दर्द का आभास?
मिले किसी को जीवन–तृप्ती‚ कोई करता रहे क्यों कर उपवास?
क्या यही रीति है यही रिवाज़‚ परम्परा इसे क्यों कहते है?
उत्थान–पतन के मिश्रित जीवन में‚ क्यों होकर विवश हम बहते रहते हैं?
हैं प्रश्न बहुत पर उत्तर एक‚ कोई समझा‚ कोई हुआ भ्रमित‚ इस अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर एक सारगर्भित !
चलित–चक्र‚ अटल‚ अनंत‚ परिवर्तन है नवजीवन !!