Bizarre intolerance of saint |
हाँ, मैं इसका प्रतीकार अपने ढंग से कर रहा था। मैं भगवान से प्रार्थना करता था कि ‘वे कृपा कर इनकी बुद्धि को सुधार दें, जिससे इनका हृदय निर्मल हो जाय । संत की और उन भले आदमियों की बात सुनकर बदमाशो के क्रोध का पारा बहुत ऊपर चढ़ गया । वे संत को उठाकर नदी मेँ फेंकने को तैयार हो गये ।
इतने में ही आकाशवाणी हुई… है संत्तशिरोमणि ! ये बदमाश तुम्हें नदी के अथाह जल में डालकर डुबो देना चाहते हैँ, तुम कहो तो इनको अभी भस्म कर दिया जाय । आकाशवाणी सुनकर बदमाशों के होश हवा हो गये और संत रोने लगे । संतको रोते हुए देखकर बदमाशों ने निश्चित समझ लिया कि अब यह हमलोगो को भस्म करने के लिये कहने वाले है । वे काँपने लगे ।
इसी बीच मे संत ने कहा – ऐसा न करे स्वामी। मुझ तुच्छ जीव के लिये इन कई जीवो के प्राण न लिये जायें । प्रभो ! यदि आप मुझ पर प्रष्न हैँ और यदि मेरे मन में इनके विनाश की नहीं, परन्तु इनके सुधार की सच्ची आकाक्षा है तो आप इनको भस्म न करके इनके मन में बसे हुए कुविचारों और कुभावनाओ को, इनके दोषों और दुर्गणों को तथा इनके पापों और तापों को भस्म करके इन्हें निर्मलहदृय और सुखी बना दीजिये । आकाशवाणी ने कहा… संत शिरोमणी ऐसा ही होगा । तुम्हारा भाव बहुत ऊँचा है 1 तुम हमको अत्यन्त प्यारे हो। तुम्हें धन्य है। बस, बदमाश परम साधु बन गए और संत के चरणों पर गिर पड़े ।