विचित्र बहरूपिया
पुरानी बात है अयोध्या में एक संत रहत्ते थे वे कही जा रहे थे। किसी बदमाश ने उनके सिर पर लाठी मारकर उन्हें घायल कर दिया। लोगों ने उन्हें बेहोश पड़े देखकर दवाखाने में पहुँचाया। वहाँ मरहम पट्टी की गयी। कुछ देर में उनको होश आ गया। इसके बाद दवाखाने का एक कर्मचारी दूध लेकर आया
और उनसे बोला महाराज ! यह दूध पी लीजिये। संत जी उसकी बात सुनकर हँसे और बोले-वाह भाई ! तुम भी बड़े बिचित्र हो ! पहले तो सिर में लाठी मारकर घायल कर दिया और अब बिछोने पर सुलाकर दूध पिलाने आ गये। बेचारा कर्मचारी संत की बात को नहीं समझ सका और उसने कहा…महाराज़ ! मैंने लाठी नहीं मारी थी।
वह तो कोई और था। मैं तो इस दवाखाने का सेवक हूँ। संत जी बोले- हॉ-हॉ मैं जानता हूँ। तुम बड़े बहुरूपिये हो। कभी लाठी मारने वाले बदमाश-डाकू बन जाते हो त्तो कभी सेवक बनकर दूध पिलाने चले आते हो। जो न पहचानता हो उसके सामने फरेब-जाल करो, मैं तो तुम्हारी सारी माया जानता हूँ मुझसे नहीं छिप सकते। अब उसकी समझ मेँ आया कि संत जी सभी में अपने प्रभु को देख रहे हैँ।