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नकली ज्ञान से भक्ति -bhakti with false knowledge anmol kahani

नकली ज्ञान से भक्ति

जितना प्रेम एक जार से, उतना हरि से प्यार। 
फिर तो तेरा हो गया, भव से बेडा पार॥ 
एक मेहतरानी राजा के महल में सफाई हेतु प्रतिदिन जाया करती थी। उसके कार्य से राजा रानी दोनों अति प्रसन्न थे।एक दिन मेहतरानी बीमार पड़ गई और उसने महल की सफाई हेतु अपने पति को भेज दिया। मेहतर तनिक रंगीन मिजाज का था। जब वह राज महल की इयोढ़ी को सफाई कर चुका तो महल के चौक की सफाई करने लगा इतने में उसकी दृष्टि राजकुमारी पर पड़ी तो वह उसकी सुन्दरता पर मुग्ध हो गया । वह घर आकर चारपाई पर लेटकर जोर-जोर से रोने लगा। उसे रोता देखकर मेहतरानी ने पूछा – तुम्हारे रोने का क्‍या कारण है?
नकली ज्ञान से भक्ति -bhakti with false knowledge anmol kahani
मेहतर बोला-मेरी तबियत महल की राजकुमारी पर आ गयी है। मैं उसे अपना दिल दे बैठा हूँ। अब तो राजकुमारी से या तो मेरा विवाह होगा नहीं तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगा। मेहतर की यह बात सुनकर मेहतरानी के पैर के नीचे की मिट्टी निकल गई और उस पर सन्नाटा छा गया। थोड़ी देर बाद मेहतरानी-मेहतर को डाट पिलाती हुई बोली-ओरे , अपना मुँह बन्द कर, तू क्‍या बक रहा है, कहीं तेरी मृत्यु तो  निकट नहीं आ गई है, कहाँ राज-कन्या और कहाँ तुम?
मेहतरानी ने उसे बहुत समझाया परन्तु उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह बोला- अब चाहे मेरी जान जाये या न जाये परन्तु मैं अपना दिल राजकुमारी को दे बैठा हूँ। जब तक उसका हमारा मिलन नहीं होगा, तब तक मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा। मैं तड़फ-तड़फ कर अपने प्राण गँंवा दूँगा।
मेहतरानी एक समझदार औरत थी वह फौरन राजमहल गई और बांदी द्वारा राजकन्या के पास सूचना भिजवायी की एक बहुत ही आवश्यक कार्य के लिए मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ। बाँदी ने राजकुमारी को सूचित कर दिया।
राजकुमारी ने आकर मेहतरानी से पुछा- क्या बात  है? तुम इतनी घबरा क्‍यों रही हो? तुम्हारे ऊपर ऐसा कौन सा ! संकट आ पड़ा है कि जो तू इस समय मेरे पास आई है।
मेहतरानी ने हाथ जोड़कर सारी बात बता दी। राजकुमारी  रूपवान होने के साथ-साथ ज्ञानवान भी थी। थोड़ी देर उसने विचार किया, फिर वह मेहतरानी से बोली- अच्छा तू जा और अपने पति से कह दे कि वह 40 दिन तक घरबार त्याग कर साधु का वर्ण धारण कर, समाधि लगाकर यदि साधना करेगा तो मैं उसकी इच्छा को पूरा करूँगी।
मेहतरानी घर आयी और मेहतर को राजकुमारी से हुई  सब बातें बता दीं। इतना सुनते ही मेहतर घर छोड़कर नगर से दो मील दूर एक बगीचे में शरीर पर भस्म लगाकर समाधि में बैठ गया। इस प्रकार 20-25 दिन व्यतीत होने पर उसकी प्रसिद्धि सारे नगर में फैल गई । नगर के नर-नारी उसे देखने के लिए आने लगे। अब तो नकली साधु बाबा के पास पुजापे का ढेर लगने लगा । जब 40 दिन पूरे होने को आये तो महात्मा जी की चर्चा राजा के कानों तक पहुँच गयी। राजा  के हृदय में भी साधु से मिलने की इच्छा जागृत हो गई। अपनी इच्छा पूर्ति हेतु राजा अपनी पत्नी और राजकुमारी तथा अपने परिवार के साथ रथ में बैठकर महात्मा जी के दर्शनों को चल पड़ा।
बाग में पहुँचकर राजा ने देखा कि हजारों नर-नारियों ने उन महात्माजी को चारों ओर से घेर रखा है। राजा भी रथ से उतर कर महात्मा जी के चरणों में परिवार सहित आ विराजे और हाथ जोड़कर उन्हें दण्डवत प्रणाम किया । इसके बाद राजकुमारी हाथ जोड़कर उनसे बोली–हे मेरे आशिक! मैं आ गई हूँ। अब तो आँखें खोलकर देखो मैं वही राजकुमारी  हूँ जिस पर तुम मोहित हो रहे थे। नकली साधु बाबा के कानों में जब ये शब्द पड़े तो उसने अपने नेत्र खोलकर देखा कि नगर के राजा, रानी, राजकुमारी और समस्त राजपरिवार तथा नगर के नर और नारी हजारों की संख्या में हाथ जोड़े उनके दर्शनों के लिए बैठे हैं।
 उसने देखा कि उसके चरणों में जेवर, कपड़े, बर्तन, फल, फूल आदि का ढेर लग रहा है। यह सारा दृश्य देखकर नकली साधु ने अपनी आँखें बन्द कर ली और मन में सोचने लगा कि एक औरत को पाने के लिए मैंने साधु का वेष धारण कर 40 दिन तक समाधि लगाई, जिसका परिणाम यह हुआ कि आज मेरे सामने संसार की समस्त सुख देने वाली वस्तुएं पड़ी हैं। राजा भी हाथ जोड़े बैठे हैं।
जब एक औरत के प्रेम में साधु बनने से यह दृश्य उपस्थित है तो वास्तव में यही योग साधना और भक्ति उस परब्रह्म परमात्मा के लिए अन्तरात्मा से करता तो आज मेरा मन रूपी कमल खिला होता और परमपिता परमेश्वर के भी साक्षात्‌ दर्शन हो जाते। यह विचार मन में आते ही उसने राजकुमारी को अपना गुरु मानकर वहाँ से उठकर वह वन में जाकर ईश्वर प्राप्ति के लिए तपस्या करने लगा।
भाइयों! यदि हम परमात्मा की वास्तविक आराधना करें तो हमारा इस संसार से बेड़ा पार हो जाये। मनुष्य को चाहिए जैसा उसका संसार को मोहित करने वाला भेष हो वैसा ही अन्तरात्मा से भी सम्बन्ध होना चाहिए। वह भेष किस काम का जिसको देखकर जनता तो तुम पर मोहित हो जाये परन्तु हृदय में दुनियादारी एवं पराया धन हड़पने की वासनाएँ भरी पडी हों अतः धर्म परायण व्यक्तियों को हमेशा सत्य मार्ग पर , चलकर परमात्मा तक पहुँचने का प्रयत्न करना चाहिये।
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