सच्चाई से लाभ
एक लकड़हारा वन में नदी के तट पर एक पेड़ पर बैठा हुआ लकड़ी काट रहा था अचानक उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर पड़ी । बेबस लकड़हारा फूट फूट कर रोन लगा। उसकी करुणा भरी आवाज सुनकर जल देवता नदी से बाहर आकर लकड़हारे से उसके रोने का कारण पूछने लगे। लकड़हारे ने बताया-अचानक मेरी कुल्हाड़ी नदी के जल में गिर गई है। | | जल देवता नदी में से एक सोने की कुल्हाड़ी निकाल कर उसे देने लगे। लकड़हारे ने कहा यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। जल देवता फिर नदी में से दूसरी चादी को कुल्हाड़ी निकाल कर उसे देने लगे। परन्तु लकड़हारे ने कहा यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। तीसरी बार जल देवता ने उसकी वही लौह की कुल्हाड़ी । नदी में से निकाल कर पूछा यह तो तुम्हारी ही होगी। लकड़हारे ने कहा स्वामी यही मेरी कुल्हाड़ी है।
जल देवता ने लकड़हारे से प्रसन्न होकर उसे लोहे , सोने और चाँदी की तीनों कुल्हाड़ी दे दीं।घर आकर लकड़हारे ने समाचार अपने मित्र को बताया। उसका मित्र बड़ा चालाक था। वह भी नदी के किनार जाकर लकड़ी काटने । लगा और जानबूझ कर उसने अपनी कुल्हाड़ी नदी में गिरा दी तथा जोर-जोर से चीखने लगा। जल देवता अब की बार भी नदी के जल से निकल कर प्रकट हुए और उससे भी रोने का कारण पूछा । लकड़हारे के मित्र ने बताया कि मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गईं है।
जल देवता नदी के अन्दर जाकर एक सोने की कुल्हाड़ी ले आये। लकड़हरे ने कुल्हाड़ी को देखते ही कहा-हाँ स्वामी! यह मेरी ही कुल्हाड़ी है। जल देवता उप्र पर क्रोधित होकर उसके झूँठ बोलने के कारण जल में अनर्ध्यान हो गये। इस प्रकार उसे अपनी लोहे की कुलड़ी से भी हाथ धोना पढ़ा।