Kabir ke Shabd
सुरतां प्यारी तूँ देश दीवाने चाल, वार घनी लाइये मतना।
हे चढजा नै अटल अटारी, सतगुरु की खोल किवाड़ी।
हे अनजानी उड़ै मिलता आत्मज्ञान, लिए बिन आईये मतना।।
हे सद्गुरु की ऊँची वाणी, किसे विरले सन्त ने जानी।
हे अनजानी उड़ै बंटे शब्द में ज्ञान, लिए बिन आइये मतना।।
उड़ै बहे त्रिवेणी की धारा, हे कोय न्हावै गुरू का प्यारा।
हे अनजानी उड़ै बहती गंगा धार, नरक में नहाइये मतना।।
हे तूँ पहर केशरी बाणा, हे तनै लहरी कितें जाना।
छह सौ मस्ताना काटेंगे कर्म क्लेश, बावहड़ के आइये मतना।