Kabir ke Shabd
रै संकट में साधो, हिरनी हरि राम पुकारी।।
एक दिन हिरनी गई बिछुड़ डार तैं,
हुआ निमष भर भारी
भाग दौड़ जंगल मे चढ़ गई, गैल हुई कुतिहारी।।
एक ओर नै फसल बिछा दिया, एक और फ़ंदकारी।
एक और अग्नि जला दई, एक और कुतिहारी।।
परवा पछवा पवन चला दी, पाड़ बगा दई जाली।
घटा ऊठ के बरसन लागी, अग्नि बुझा दई सारी।।
बोझे मा तैं सुसा निकला, गैल हुई कुतिहारी।
बाम्बी मा तैं सांप निकल के, पापी डँसा शिकारी।।
नाचै हिरनी कुदै हिरनी, मन में खुशी मना रही
कह कबीर सुनो भई साधो, भँवसागर तैं तारी।।