Kabir ke shabd
तजो अविद्या नींद इब तो जाग जा न तूँ।
तूँ दाग जिगर का धोले, दिन दिन घटता आवै भोले।
किसी वैध हकीम ने टोहले
जल्दी भाग जा न तूँ।।
पी के रामनाम की भंग ने, चढजा नशा देखले रंग ने।
तूँ तजदे नियत कुसंग ने,
बिल्कुल त्याग जा न तूँ।।
मन प्रधान पाँच हैं नारी, दिन भर होती फिरें ख्वारी।
सत्संग में डट जां सारी, नेड़े लाग जा न तूँ।।
कह हरिदास रहो मत खाली, जग में करले धर्म दलाली।
सत्त की भर ले रफल दुनाली,
बेशक दाग जा न तूँ।।