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आनन्द के लूटें खजाने, म्हारे सत्तगुरु के दरबार मे – Kabir Ke Shabd-aanand ke luten khajaane, mhaare sattaguru ke darbaar me।

 कबीर आनन्द के लूटें खजाने

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Kabir

आनन्द के लूटें खजाने, म्हारे सत्तगुरु के दरबार मे।
धन में सुख ढूंढने वालो, तुम धनवानों से पूछ लो।

उन्हें चैन नहीं मिलता है, पल भर भी कार व्योहार में।
कोठी बंगले कारों की भई, कमी न जिनके पास में।
वो भी ये कहते हैं,
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Kabir

हम सुखी नहीं संसार में।।
भाई बन्धु कुटुंब कबीला, कितना बड़ा परिवार है।

वे देखें रोज कचहड़ी, भई आपस की तकरार में।।

ना सुख है इस गृहस्थी में भइ, न सुख वन में जाए के।
गुरु नित्यानन्द समझावे,
सुख मिलता अगम विचार में।।

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