Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
गाफिल मत हो चुनड़ी वाली, बड़ी अनमोल तेरी चुनड़ी की लाली।
ये है पीहर की चुंदड़िया, जतन से जराओढ़ चुनड़ी।
इड़ा पिंगला सुषम्ना ऐसी, गंगा जमना सरस्वती जैसी।
उन्नचास मार्ग बह सुंदरी, उनमें लहरावै तेरी चुनड़ी।ओढ़ चुनड़ी।
सोवै चुनड़ी की ओट में सांवरियां। जतन से जरा।।
दुनिया ने ढूंढी औरों में बुराई, अपनी बुराई से आंख चुराई।
अपने दागन पे पर्दा गिरावै, औरों की चुनड़ी के दाग गिनावै।
कहीं दुनिया उठाए ना उंगलियां। जतन से।।
ज्ञानी इस चुनड़ी का मान बढ़ावै, मूर्ख मैली कर माटी में मिलावै।
दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी, जैसी लाए थे, वैसी ही छोड़ी।
आके बाबुल की रुके ना नजरिया। जतन से जरा।।
यहाँ वहां यूँही मत छोड़ चुनड़ी।।
रखवाली में तूँ रख ना कसरिया, जतन से।।
बाबुल तेरा स्याना है बुनकर, चुनड़ी में धागे सजाए चुन चुन कर।
नो दस मास बुनन में लागे, तब चुनड़ी रखी दुनिया के आगे।
कैसे बुनी गई , किसी को ना खबरिया। ओढ़ चुनड़ी-२।।
बाबुल तेरा स्याना है बुनकर, चुनड़ी में धागे सजाए चुन चुन कर।
नो दस मास बुनन में लागे, तब चुनड़ी रखी दुनिया के आगे।
कैसे बुनी गई , किसी को ना खबरिया। ओढ़ चुनड़ी-२।।
इड़ा पिंगला सुषम्ना ऐसी, गंगा जमना सरस्वती जैसी।
उन्नचास मार्ग बह सुंदरी, उनमें लहरावै तेरी चुनड़ी।ओढ़ चुनड़ी।
सोवै चुनड़ी की ओट में सांवरियां। जतन से जरा।।
दुनिया ने ढूंढी औरों में बुराई, अपनी बुराई से आंख चुराई।
अपने दागन पे पर्दा गिरावै, औरों की चुनड़ी के दाग गिनावै।
कहीं दुनिया उठाए ना उंगलियां। जतन से।।
ज्ञानी इस चुनड़ी का मान बढ़ावै, मूर्ख मैली कर माटी में मिलावै।
दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी, जैसी लाए थे, वैसी ही छोड़ी।
आके बाबुल की रुके ना नजरिया। जतन से जरा।।