Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
कब आओगे गुरू जी म्हारे देश, मीरा देखै बाट खड़ी।
आवन आवन कह गए सद्गुरु, कर गए कौल अनेक।
गिनते-२ घिस गई मेरी उंगली की ये रेख।।
सद्गुरु जी को ढूंढन चाली, करके भगवां भेष।
ढूंढत-२ उम्र बीत गई, हो गए केश सफेद।।
ढूंढत-२ उम्र बीत गई, हो गए केश सफेद।।
कागज नाही शाही नाही, नहीं कलम उस देश।
पँछी को प्रवेश नहीं जी, कैसे भेजूंगी सन्देश।।
पँछी को प्रवेश नहीं जी, कैसे भेजूंगी सन्देश।।
कांसी ढूंढी मथुरा ढूंढी, ढूंढा देश विदेश।
मीरा को गुरू रविदास मिले, सत्त नाम दुर्वेश।।
मीरा को गुरू रविदास मिले, सत्त नाम दुर्वेश।।