Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
छोड़ जगत के गोरख धंधे,करले हरि का ध्यान।
कहा मेरा ले मान बन्दे कहा मेरा ले मान।।
निकल गया बो हाथ न आए, समय बड़ा बलवान।
कहा विषय भोग में तुं भरमाया, याद तुझे ईश्वर ना आया।
सुंदर काया देख लुभाया, धन दौलत भी बड़ा कमाया।
भूखे प्यासे को अन्न धन का, कभी तो करले दान।।
तीर्थ किये नहाया गंगा,अपने मन को किया न चंगा।
मन मे छवि हरि की बसाले, भर्म में इतना हुआ क्यूँ अंधा।
राम नाम से प्रीत लगाले, तेरा हो कल्याण।।
लगता तुझ को जग ये सुहाना, एक दिन होगा छोड़के जाना।
तेरा अपना कुछ भी नहीं है, यहां पे सब कुछ है बेगाना।
ईस दुनिया मे तुं है बन्दे, दो दिन का महमान।।
तेरा अपना कुछ भी नहीं है, यहां पे सब कुछ है बेगाना।
ईस दुनिया मे तुं है बन्दे, दो दिन का महमान।।
हरिनाम से क्यों मुंह मोड़ा,मोहमाया से नाता जोड़ा।
तुं कमसिंह ये जीवन थोड़ा, दौड़ा जाए समय का घोड़ा।
ना जाने कब निकल पड़ेंगें, इस तन से ये प्राण।।