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कबीर काहे बजाए शंख नगारे – kabir kahe bajye sankh nagare – Kabir ke shabd

कबीर की भाषा
Kabir Ke Shabd 


कबीर के शब्द

काहे बजाए शँख नगारे, काहे करें अजान रे।
ढूंढ सके तो ढूंढ़ ले, तेरे अंदर है भगवान रे।।

मृगां जैसे फिरे भटकता, चन्दन तिलक लगाएं तूँ।
हाथ में माला कण्ठ दुशाला, सिर पर केश बढ़ाए तूँ।
गंगा कांसी क्यों जाए, ये कहते वेद पुराण रे।।

सेवा करले सब जीवों की, निशदिन शीश झुकाले तूँ।
देंगे दिखाई ईश्वर तुझको, मन को साफ बना ले तूँ।
दीप ज्ञान का जला के मन मे,  मिटा दे सब अज्ञान रे।। 

मौह माया की चमक में कुछ भी, देता नहीं दिखाई रे।
बन्द आंख से देखले मन में, परम् पिता की खुदाई रे।
मन मन्दिर में बसे हैं तेरे, कर ले तूँ पहचान रे।।
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