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वह सत्य सत्य नहीं, जो निर्दोष की हत्या में कारण हो – The truth is not the truth, which is the reason for the murder of the innocent.

वह सत्य सत्य नहीं,

जो निर्दोष की हत्या में कारण हो

सैकड़ों साल बीत गये, किन्हीं दो नदियों के पवित्र संगम पर एक तपोधन ब्राह्मण रहते थे। उनका नाम कौशिक था। वे अपने जीवन का प्रत्येक क्षण शास्त्र सम्मत धर्माचरण में बिताते थे, उनकी मनोवृत्ति सात्तिवक थी. वे नियमपूर्वक संगम पर स्नान करके त्रिकाल संध्या करते थे तथा भूल से भी किसी का मन नहीं दुखाते थे। उनके निष्कपट व्यवहार की प्रशंसा दूर दूर तक फैल गयी थी।

“महाराज! आप सत्यवादी हैं, ब्राह्मण हैं, स्वप्र में भी आपने असत्य भाषण नहीं किया है। कृपा पूर्वक बतलाइये कि लोग किधर गये। डाकुओं ने नदी के तटपर आसीन कौशिक ब्राह्मण का मन चझ्लल कर दिया। वे कुछ व्यक्तियों का पीछा करते-करते कौशिक के आश्रममें आ पहुँचे थे।
That's not the truth who is the cause of the murder of an innocent
यह बात नितान्त सत्य है कि वे निकट की ही झाड़ियों में छिप गये हैं। यदि मैं डाकुओं से उनका ठीक ठीक पता नहीं बता देता तो मुझे असत्य भाषण का पाप लगेगा। सत्य ही तप है, धर्म है, न्याय है, मैं सत्य को नहीं छिपा सकता।’ कोशिक के नेत्र बंद थे, वे मन में सत्य-असत्य का विवेचन कर रहे थे।
सत्यवादी सच बोलने में विलम्ब नहीं करते, ब्राह्मण देवता! आपके लिये आगा-पीछा करना उचित नहीं है।’ डाकुओं ने प्रशंसा की।
उधर““। ब्राह्मण ने अगुली से संकेत किया और क्षण मात्र में उनके सत्य कथन के दुष्परिणाम रुप में डाकुओं ने असहाय यात्रियों के प्राण ले लिये। उन्हें हित-अहित का तनिक भी विवेक नहीं था, वे कोरे सत्यवादी थे। कौशिक के सत्य ने अधर्म और अन्याय को प्रोत्साहन दिया और इससे उन्हें नरक में जाना पड़ा।
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