अब रहीम मुश्किल पड़ी
अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम।9॥।
अर्थ–कवि रहीम कहते हैं कि अब तो जीवन में ऐसी कठिनाई आ गई कि दोनों कार्य करने दुष्कर हो गए हैं। सत्य बोलने से संसार का काम नहीं चलता और मिथ्या भाषण से भगवान का मिलना संभव नहीं है।
भाव—कभी-कभी आदमी के जीवन में ऐसे क्षण आ जाते हैं, जब वह यह निर्णय नहीं कर पाता कि उसे क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। उसकी स्थिति दो राहे पर खड़े उस व्यक्ति की तरह हो जाती है, जो सोच नहीं पाता कि किस रास्ते से आगे बढ़े । एक मार्ग सत्य का है तो दूसरा मार्ग असत्य का। यदि सत्य के मार्ग को पकड़ता है तो उसे किसी तरह का तात्कालिक लाभ प्राप्त नहीं होता और झूठ के मार्ग को पकड़ता है तो ईश्वर नाराज होता है। ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि वह तात्कालिक लाभ की चिंता न करे और सत्य के मार्ग पर ही चले, क्योंकि यदि विधाता नाराज हो गया तो कहीं भी त्राण नहीं है। कहीं भी सुख नहीं है। जीवन-भर वह झूठ उसे भीतर-ही-भीतर खाता रहेगा।