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ऊगत जाही किरन सों – कवि रहीम -18

ऊगत जाही किरन सों

ऊगत जाही किरन सों अथवत ताही कांति।…

त्यों रहीम सुख दुख सवै,’ बढ़त एक ही भांति।। 18॥

अर्थ—कवि रहीम का कथन है कि जैसी लालिमा पूर्ण किरणों से युक्त सूर्य उदित होता है, उसी प्रकार की दीप्ति से अस्त भी होता है। इसी प्रकार जो मनुष्य सुख-दुख को समान भाव से सहन करता है, वह जीवन में समभाव से ही प्रगति करता है।

भाव—यहां समदशी व्यक्ति के गुणों का बखान करते हुए कवि रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति जीवन में सुख-दुख को समान और सहज भाव से ग्रहण करता है अर्थात सुख में न ज्यादा सुखी होता है और न अभिमान करता है और दुख में न ज्यादा व्याकुल होता है, इसे समभाव कहते हैं ऐसा व्यक्ति सदैव उन्‍नति करता है और लोगों का प्रिय बनता है। ऐसे व्यक्ति की तुलना सूर्य की उस लालिमा से की गई है, जो प्रातकाल व सायंकाल में देखने को मिलती है। विकास के कषणों में भी और. अस्त अर्थत दुर्दिनों में भी उसकी तेजस्विता में कोई कमी नहीं आती। |

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