Kabir Ke Shabd
हंसा हंस मिले सुख होइ।
ये तो पाती है रे बुगलन की,सार ना जाने कोई
जो तू हंसा प्यासा क्षीर का कूप क्षीर ना होइ
यहाँ तो नीर सकल ममता का,हंस तजा जस खोई
छः दर्शन पाखण्ड छियानवे,भेष धरे सब कोई
चार वर्ण और वेद कुराना,हंस निराला होइ
ये यम तीन लोक का राजा,शस्त्र बांधे संजोई
शब्द जीत चलो हंसा प्यारे,रहजा काल वो रोइ
कह कबीर प्रतीत मान ले,जीव ना जाये बिगोई
अमर लोक में जा बैठा हूँ,आवागमन ना होइ