कौसिया काफी-३२
आज मोर घर साहिब आए,
दर्शन करि दोऊं नैना जुड़ाये। टेक
बिगत कलेश अखिलेश दयानिधि,
तिलक मोर
शीश मुकुट मणिमय छवि छबियो।
लपटायी,
चंदन से चौका
गज मोतियन की चौक पुरायी।
बाजत ताल मृदंग झाँझ डफ,
साधु से मिलि मंगल गाये।
काम क्रोध मद मोह बुराये।
चरण कमल रज शीश चढ़ाये।
सत्य नाम निज मन्त्र सुनाए।
उरमाल मनोहर,
दुख दारिद्र्य दूर सब भागे,
भयो आन्नद भवन में चहुंदिश,
आज मोर घर साहिब आए,
दर्शन करि दोऊं नैना जुड़ाये। टेक
बिगत कलेश अखिलेश दयानिधि,
तिलक मोर
शीश मुकुट मणिमय छवि छबियो।
लपटायी,
चंदन से चौका
गज मोतियन की चौक पुरायी।
बाजत ताल मृदंग झाँझ डफ,
साधु से मिलि मंगल गाये।
काम क्रोध मद मोह बुराये।
चरण कमल रज शीश चढ़ाये।
सत्य नाम निज मन्त्र सुनाए।
उरमाल मनोहर,
दुख दारिद्र्य दूर सब भागे,
भयो आन्नद भवन में चहुंदिश,
कञ्चन थार सँवारि आरती,
धरिमिनि करत है हिये दुलआधे ।
धु करुणा सिन्कवीर कृपानिधि,
सत्यनाम निज मन्त्र सुनाये || आ०॥
धर्मराज साहब ने दीक्षा लेने के पश्चात यह भजन
गाया।
धरिमिनि करत है हिये दुलआधे ।
धु करुणा सिन्कवीर कृपानिधि,
सत्यनाम निज मन्त्र सुनाये || आ०॥
धर्मराज साहब ने दीक्षा लेने के पश्चात यह भजन
गाया।