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गजल-३८
दुनिया से जिसने दिल को हटाया किसी तरे।
माया के बस में फिर वो आया किसी तरे || टेक
कहने को सभी कहते है कि हम भी विरागी।
देखो तो उनमें न्याय न पाया किसी तरे।
लाखों में सत शोई जो देखिके नहीं।
कचन को कामिनी में लुभाया किसी तरे।
पण्डित जी पढ़के पंथी औरों को हैं सुनाते।
खुद ही हिरदय जो ज्ञान समाया किसी तरे।
कहके पुराण भावत ईश्वर के भेद का।
ऋषियों ने भी ठीक जनावा किसी तरे।
वक्त जो धर्म शास्त्र के संवादी हो गये।
आपस में जुदा गीत हैं गाया किसी तरे।
वेदों के अर्थ का भी यह हाल है सब में।
अपने ही मन के तर्ज झुकाया किसी तरे।।
ऐसा जहां में कौन जो सन्त पंथ बतावे।
पर हा कबीर ने तो लखाया किसी तरे।।
सतगुरु ने अविद्या को रूप और अविद्या का प्रभाव
इस प्रकार बताया है।
कहा तक इसके अनर्थों की कथा कोई कहे।
बहुत कुछ थोड़े ही में कबीर ने समझा दिया।
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