एक साहूकार प्रतिदिन दान किया करता था। एक दिन एक भिखारी उसके यहाँ दान माँगने आया। वह बारबार दरवाजे पर जाकर और आवाज बदल-बदल कर दान ले आता था।
अन्तिम बार जब भिक्षुक साहूकार के यहाँ गया तो वह बोला–आप दान तो देते हैं परन्तु एक गलती करते हैं, आप ऊपर की ओर नहीं देखते, नीचे की ओर ही देखते रहते हैं। आपके पास से माँगने वाले प्रतिदिन कई-कई बार दान ले जाते हैं। में आज आपसे स्वयं पाँच बार दान ले गया हूँ। साहूकार बोला–यह धन मेरा नहीं है। दान देने वाला तो कोई और ही है। लोग मुझे ही दाता कहते हैं। इस कारण से मैं लज्जित होकर ऊपर नहीं देख पाता।