,. “सूईकी खोज! !
एक औरत के बारे में अनेक विचित्र बातें सुनी थीं। एक दिन वह घर में सूंई रखकर भूल गई और बाहर जाकर ढूँढ़ने लगी। किसी ने उससे पूछा–क्या ढूँढ़ रही हो। उसने उत्तर दिया कि मैं अपनी खोयी हुई सूंई ढूँढ़ रही हूं। उस मनुष्य ने फिर पूछा–कहाँ खो गई है? औरत ने बताया-घर में । उस मनुष्य ने कहा–घर में खोयी हुई बाहर गली में खोजना कितनी बड़ी मूर्खता है? उस औरत ने कहा–घर में दीपक जलाने को तेल नहीं है और गली में लालटेन का उजाला हो रहा है, इसलिए यहाँ गली में ढूँढ़ रही हूं। उस औरत के समान ही मूर्ख आदमी, अपने हृदय में स्थित भगवान को खोजने के लिए बाहर टक्कर खाते फिरते हैं। परिणाम यह निकलता है कि बाहर ढूँढ़ते ढूँढ़ते भगवान तो उन्हें मिलते नहीं बल्कि मानव जीवन व्यर्थ चला जाता है।