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भजन-ध्वनि बनजारा ३७
लाख कहीं समुझाय सीख मोरी एक न माने रे ।
यह मन ऐसा बावरा, करो अनोखा काम ।
स्थिर होय कहुं लेत नाहीं एक पल प्रभु का नाम।
हानी
अरु
लाभ

जाना
रा
मी ख
सोरी
एक
न मान
रे ।
कहां लगी मैं वरणन करूँ अवगुण भरे अनेक।
हित अनहित जाने नहीं अपनी राखत टेक।
अमिय विष एक में
जहां तहां मारा फिरे
ताने को चूके नहीं,
नहीं एक ठिकाना रे
रहे
सानै रे ।। सीख० ।।
भली बुरी सब ठौर।
जहाँ लग याकी दौर।
॥ सीख० ॥
तन
ज्ञानी
मन है बहुरूपिया, कहै कबीर विचार।
मूरख बावरा घूरे, स्वाग हजार।
रार सन्तन से ठाने रे | सीख मोरी० ।।
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