Search

ना समझी का फल

ना समझी का फल 

एक बार एक व॒द्धा बीमार हो गई। उसके दोनों बेटों ने सोचा कि माँ को दवाई दिलवानी चाहिए। उसके दोनों बेटे डॉक्टर के पास जाकर बोले—हमारी माता बीमार पड़ी हैं। आप औषधि देने की कृपा करें। डॉक्टर ने एक शीशी में दवाई भर दी और कहा कि इस शीशी को अच्छी तरह से हिलाकर दवाई को पिलाना। लड़के ने पूुछा–डॉक्टर साहब क्‍या हर बार शीशी को हिलाना पड़ेगा। डॉक्टर साहब ने हाँ में उत्तर दिया और बताया कि दवाई बहुत अच्छी है। इसके पिलाते ही बुखार उतर जायेगा। यदि एक खुराक से बुखार न उतरे तो आधा-आधा घंटे के अन्तराल से सभी खुराक पिला देना। 
घर आकर एक लड़का माँ को दवाई देने लगा तो दूसरा बोला-डॉक्टर साहब ने दवाई देने से पहले हिलाने को कहा था। बस फिर क्‍या था, बड़े भाई ने माँ के दोनों हाथ पकड़ लिए और छोटे भाई ने दोनों टागों को कसकर पकड़ लिया और बड़े जोर से हिलाना शुरू कर दिया। मां जोर जोर से चिल्‍लाने लगी–ेरे मैं मर जाऊगी, मुझे इस तरह मत हिलाओ। दोनों भाइयों को यह पता था कि दवाई पीने को मरीज मना करते ही हैं। हम भी बीमार पड़ने पर दवाई पाना पसन्द नहीं करते थे। परन्तु छीमारी में मरीज की कोई नहीं सुनता। उन दोनों ने माँ को अच्छी तरह से हिलाना प्रारम्भ कर दिया। जब देखा कि माँ बेहोश होने लगी है तो उसे दवाई पिला दी गई। 
माँ के अन्दर अभी थोड़ी से सास बाकी रह गई थी। थोड़ी देर बाद जब वह होश में आईं तो लड़कों ने सोचा कि दवाई का असर उतर गया है इसलिए फिर से दवाई देनी चाहिए। दोनों भाइयों ने फिर से माँ को हिलाना प्रारम्भ कर दिया और चार पांच झटकों में वह शान्त हो गई। प्रत्येक बात को भली भाँति सोच समझकर करना आवश्यक है। 
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply

CALLENDER
September 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
FOLLOW & SUBSCRIBE