कन्या विक्रय
शास्त्रों में लिखा है कि “ अपुत्रस्य गतिर्नास्ति ” अर्थात् पुत्र हीन व्यक्ति की सदगति नहीं होती । एक ब्राह्मण के पुत्र न होने के कारण वह पुत्र प्राप्ति के लिए परेशान था। उसने प॒त्र प्राप्ति के लिए देवताओं की मनोती की और तीर्थाटन भी किया। अनेकों सिद्ध पुरुषों की पूजा की, ज्योतिषियों की शरण में गया, पूजा-पाठ जप किया, परन्तु सब व्यर्थ रहा। उसे पुत्र की प्राप्तिन हो सकी। अन्त में एक अघोरी के पास से उसे मलिन मंत्र के द्वारा भेरव ने पुत्र देना स्वीकार किया परन्तु उससे इसके बदले में पाँच सेर गोमांस माँगा। अपनी गरज बावली होती है, उस समय आदमी को अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता। उस ब्राह्मण ने भेरव की माँग स्वीकार कर ली।
कुछ समय के पश्चात् जब ब्राह्मण को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई तो उसी समय भैरव ने उससे उसकी माँग पूरी करने को कहा । ब्राह्मण बोला–जब बेटा बड़ा हो जायेगा तब तुम्हारी माँग पूरी करूँगा। इस प्रकार ब्राह्मण ने भेरव को टरका दिया। इस प्रकार जब कई बार भेरव को ब्राह्मण ने टरका दिया तो क्रुद्ध होकर भेरव ने ब्राह्मण से कहा–मेरी मांग पूरी करो, नहीं तो मैं मजबूर होकर तुम्हारे बेटे को समाप्त कर दूगा। इस पर ब्राह्मण ने बड़ी मिन्नत के साथ कहा–मैं तो आपको पांच सेर के बदले दस सेर दे दूं, परन्तु एक ब्राह्मण को शास्त्रों में गौवध निषेद है। यदि लोगों को पता चल गया तो गोघाती कहकर मुझे जाति से बाहर कर देंगे।
भेरव ने कहा–मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। तुम्हारे गांव में जो एक वैश्य है, उसके यहां शादी है। वह अपनी पुत्री को बेचकर धन लाया है। उसके यहां से पांच सेर अन्न लाकर मुझे भेंट कर दो। वह अन्न गाय के मांस के बराबर होगा। ब्राह्मण वैश्य के घर से पांच सेर अन्न ले आया और ज्यों ही उसने उसे बर्तन में उडेला तो उस पात्र में अन्न के बदले गोमांस का लोथड़ा मिला। यह देखकर वह ब्राह्मण आएचर्य चकित रह गया।
भेरव ने कहा–मुझे मांस की कोई आवश्यकता नहीं थी। अपितु तुम्हें यह समझाने आया हू कि कन्या को बेचकर लाये हुए पैसे का अन्न खाना गोमांस के बराबर है।