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“मार्टिन लूथर किंग जूनियर: एक जीवन गाथा” (Martin Luther King Jr.: Ek Jeevan Gatha)

मार्टिन लूथर किंग जूनियर, जिन्हें नागरिक अधिकारों के आंदोलन के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक माना जाता है, का जन्म 15 जनवरी 1929 को अटलांटा, जॉर्जिया, अमेरिका में हुआ था। उनका असली नाम माइकल लूथर किंग जूनियर था, जिसे बाद में उनके पिता द्वारा मार्टिन लूथर किंग जूनियर में बदल दिया गया। उनके पिता, मार्टिन लूथर किंग सीनियर, एक बैपटिस्ट पादरी थे, और उनकी माता, एल्बर्टा विलियम्स किंग, एक स्कूल टीचर थीं। किंग का परिवार एक धार्मिक और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित परिवार था, जिसने उनके विचारों और जीवन को आकार दिया।

किंग ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अटलांटा के पब्लिक स्कूलों में प्राप्त की। वे एक बुद्धिमान छात्र थे और 15 साल की उम्र में ही उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली। उन्होंने मोरहाउस कॉलेज में दाखिला लिया और 1948 में समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, किंग ने क्रोजर थियोलॉजिकल सेमिनरी से डिविनिटी की डिग्री प्राप्त की और 1955 में बोस्टन विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

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मार्टिन लूथर किंग जूनियर महात्मा गांधी के अहिंसात्मक प्रतिरोध के सिद्धांत से अत्यंत प्रेरित थे। उन्होंने अहिंसा और प्रेम के सिद्धांतों को अपने नागरिक अधिकार आंदोलन में अपनाया और इसे अपने संघर्ष का आधार बनाया। किंग का मानना था कि समाज में बदलाव अहिंसात्मक तरीके से ही संभव है और उन्होंने हमेशा शांतिपूर्ण प्रदर्शनों और सविनय अवज्ञा का समर्थन किया।

किंग का सबसे पहला प्रमुख आंदोलन 1955 में मोंटगोमरी, अलबामा में हुआ, जिसे मोंटगोमरी बस बॉयकॉट कहा जाता है। यह आंदोलन रोजा पार्क्स नामक एक अफ्रीकी-अमेरिकी महिला द्वारा बस में अपनी सीट एक श्वेत व्यक्ति को देने से इंकार करने के बाद शुरू हुआ। किंग ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया, जो कि 381 दिनों तक चला और अंततः अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने बसों में नस्लीय भेदभाव को अवैध करार दिया।

1963 में, किंग ने वाशिंगटन डी.सी. में एक विशाल मार्च का आयोजन किया, जिसे “मार्च ऑन वाशिंगटन फॉर जॉब्स एंड फ्रीडम” कहा जाता है। इस मार्च में 250,000 से अधिक लोग शामिल हुए और यहीं पर किंग ने अपना प्रसिद्ध “आई हैव ए ड्रीम” भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने एक ऐसे समाज का सपना देखा जहां हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले और नस्ल के आधार पर कोई भेदभाव न हो। यह भाषण आज भी नागरिक अधिकार आंदोलन का प्रतीक माना जाता है।

1964 में, मार्टिन लूथर किंग जूनियर को उनके अहिंसात्मक संघर्ष और नागरिक अधिकार आंदोलन में योगदान के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले सबसे युवा व्यक्ति बने। उन्होंने अपनी पुरस्कार राशि को नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए दान कर दिया।

उनके जीवन के बाद के वर्षों में, किंग ने गरीबी, नस्लवाद और युद्ध के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। उन्होंने वियतनाम युद्ध का खुलकर विरोध किया और गरीबों के अधिकारों के लिए “पुअर पीपल्स कैंपेन” की शुरुआत की।

4 अप्रैल 1968 को, मेम्फिस, टेनेसी में एक होटल की बालकनी पर खड़े होने के दौरान मार्टिन लूथर किंग जूनियर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनकी मृत्यु से अमेरिका और पूरे विश्व में शोक की लहर दौड़ गई। उनकी हत्या ने नस्लीय समानता और न्याय के संघर्ष को और अधिक मजबूती प्रदान की।

मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जीवन और उनका कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने अहिंसा, प्रेम और समानता के सिद्धांतों को अपने संघर्ष का आधार बनाया और सामाजिक न्याय के लिए अद्वितीय योगदान दिया। उनके जीवन और कार्यों ने दुनिया भर में नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों को प्रेरित किया।

मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जीवन एक महान प्रेरणा है। उनकी अद्वितीय प्रतिभा, साहस और संघर्ष ने उन्हें इतिहास के महानतम नेताओं में से एक बना दिया। उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि समर्पण, अहिंसा और प्रेम से हम समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। उनकी कहानी और विरासत सदैव मानवता के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी रहेगी।

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