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दूसरों की रक्षा हेतु अपना बलिदान

दूसरों की रक्षा हेतु अपना बलिदान

 ”परोपकाराय सता विभूतय: ” 

एक बार की बात है कि देवताओं ने आपस में विचार विमर्श किया कि पृथ्वी पर चलकर उशीौनर के पुत्र राजा शिवि की साधुता की परीक्षा ली जाये। 
अग्निदेव ने कबूतर का रूप धारण कर आगे चल पड़े। उनके पीछे-पीछे इन्द्र देव बाज का रूप रखकर माँस हेतु चल पड़े। उस समय राजा शिवि यज्ञ शाला में दिव्य सिंहासन पर आरूढ़ थे। कबूतर उनकी गोद में गिर पड़ा। राजा के पास बैठे हुए पुरोहित ने कहा–महाराज! यह कबूतर बाज के डर से अपने प्राणों की रक्षा हेतु आपकी शरण में आया है। कबूतर भी आर्तस्वर में बोला–महाराज मेरी रक्षा कीजिए। यह बाज मेरा पीछा कर रहा है। मैं आपकी शरण में हूँ। वास्तव में मैं कबूतर न होकर एक ऋषि हूँ। मैंने अपना शरीर बदल रखा है। मैंने ब्रह्मचर्य का पालन किया है, वेदों का भी अध्ययन किया है। मैं एक तपस्वी, जितेन्द्रिय, निष्पाप और निर्दोष हूँ। अत: आपसे निवेदन है कि मुझे बाज के हवाले न करें। 
इतने में आवाज ने आकव्कर राजा शिबत्वि से कहा —हे राजन ! इस वक्लबूतर को मुझे दे दीजिये । यह सेरा भोजन है । आप मेरे क्कार्य में बाधक न बनें । राजा ने अपने मन सें स्ोच्ना ये दोनों 
* पक्षी जितनी शाुद्द्ध संस्कृत भाषा बोल रहे हैं ऐसी क भी व्किसी * ‘पक्षी के सुर से नहीं सुनी | में इन दोनों का वास्तविक स्वस्टप , जानकर ही उचित न्याय करूँगा । जो मनुष्य शरणागत प्राणी ) व्छो उसके शात्रु के हवाले कर देता है, उसके राज्य में अच्छी ) वर्षा नहीं होती, बोये गये बीज नहीं उगते, संकट के समय ‘ उसकी क्कफोर्ड रक्षा नहीं करता, स्वर्ग स्रे उसे नीचे गिरा दिया ) जाता है, आदिआदि ज्ातों पर विचार करके राजा ने निशच्चय किया व्कफि कबूतर नहीं दिया जायेगा चाहे मुझे प्राण त्यागने पड़े । / राजा शिवलि ने लाज से कहा—तुम क्कितना भी प्रयत्न ) करो परन्तु कबूतर तुम्हें नहीं मिलेगा । इसके अतिरिक्त जिस प्रकार भी तुम्हारा प्रिय कार्य हो सकता हो, में उस्रे करने को ) लैयार हूँ। | ) लाज लोला—यदि ऐसी जात है तो आप कबूतर के वजन के बराबर अपनी दाहिनी जांघ से मांस काटकर दे दो । ) यह सुनते ही राजा ने फौरन तराजू मंगाई । उसके एक पलड़े । पर कलूतर को रख्नता और दूसरे पलड़े पर अपनी ज्ाांघ से माँस | काटकर ररब दिया। परन्तु वह पूरा नहीं हुआ तो राजा अपने ) अंगों का साँस काट-काट कर रखने लगा तो भी साँस पूरा ! नहीं हुआ ।॥ परन्तु उन्होंने इसका जरा भी कलेश नहीं माना। , यह देख्बकर बाज बोला –>-राजन्‌ ! कबूतर के प्राण्गों व्की रक्षा हो गई और बाज उसी क्षण अन्‍्तर्ध्यान हो गया | राजा ने कबूतर से पूछा—तुम क्लौन हो और वह बाज कौन शा? कबूतर ने लताया –बाज स्वाक्षात्‌ इन्द्र थे और में अग्नि देव हूँ। हम दोनों आपको परीक्षा लेने आये थे, जिसमें आप सफलन रहे । राजा ने अग्नि देव व्को प्रणाम किया | इसके बाद अग्निदेव राजा शिवि को वरदान देकर चले गये। कुछ समय पश्चात्‌ उस वरदान से राजा को कपोतरामा नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। 
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