कबीर भजन राग बागेश्वरी ११२.
ऐसे मोहि राधा कृष्ण भरोसो। टेक
पाला आनि पड़ी ब्रज ऊपर,
इन्द्र ने कोप करायो ।
रात दिवस नख ही पे धरयो,
भूमि के भार हरयो ।
अंधासुर मार बकासुर मारो,
वृषासुर मार्यो ।
संग सखी सब कहत कृष्ण सौ,
सबको दुख टार्यो ।
पैठि पाताल कालिक नाथ्यो,
फण पर नृत्य करो ।
अन्तर्ध्वनि हुए गोपिन में,
राधा ध्यान धरौ ।
ऐसे मोहि राधा कृष्ण भरोसो। टेक
पाला आनि पड़ी ब्रज ऊपर,
इन्द्र ने कोप करायो ।
रात दिवस नख ही पे धरयो,
भूमि के भार हरयो ।
अंधासुर मार बकासुर मारो,
वृषासुर मार्यो ।
संग सखी सब कहत कृष्ण सौ,
सबको दुख टार्यो ।
पैठि पाताल कालिक नाथ्यो,
फण पर नृत्य करो ।
अन्तर्ध्वनि हुए गोपिन में,
राधा ध्यान धरौ ।
बृज बनितन को संग छाड़ि के,
यदुवर नाम परी ।
दुश्शासन बलवन्त जानके,
द्रोपदि चीर हरयाँ ।
• कृष्ण-कृष्ण करि दोपदि पुकारे,
अधर जानि बढ़यो ।
गज की टेर सुनी हरि क्षण में,
वाहन छाड़ि चल्यो ।
विप्र सुदामा हरि पद भेजे,
कञ्चन महल भयो ।
पाण्डव के दुख हरने के कारण,
कौरव नाश कर्यो ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
निर्भय ध्यान धरो ।
यदुवर नाम परी ।
दुश्शासन बलवन्त जानके,
द्रोपदि चीर हरयाँ ।
• कृष्ण-कृष्ण करि दोपदि पुकारे,
अधर जानि बढ़यो ।
गज की टेर सुनी हरि क्षण में,
वाहन छाड़ि चल्यो ।
विप्र सुदामा हरि पद भेजे,
कञ्चन महल भयो ।
पाण्डव के दुख हरने के कारण,
कौरव नाश कर्यो ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
निर्भय ध्यान धरो ।