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कन्या विक्रय का फल

कन्या विक्रय का फल 

एक बार एक राजा ने अपने महल के झरोखे से चिड़िया _ “के घोंसले को अपने नौकर से बाहर फिकवा दिया। रात्रि , होने पर जब चिड़िया व चिंरोटा महल में आये तो उन्हें अपना ‘ घोंसला व अंडों का पता नहीं चला। चिड़िया विलाप करती हुई कहने लगी–हाय! इस । अन्यायी राजा ने मेरे बच्चों सहित मेरा घोंसला बरबाद कर , | दिया। इसलिए ईश्वर इसको इसका फल अवश्य देगा। /.. चिड़िया का विलाप सुनकर चिरौंटा बोला-प्रिये! | । तुम चिन्ता न करो। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि तेरी आँखों के ) सामने ही मैं इस राजा को नष्ट कर डालूगा। |. चिड़िया बोली–हे स्वामी! राजा को नष्ट करने की | शक्ति हममें कहाँ है? इसलिए ऐसी असंभव प्रतिज्ञा न । कीजिए। क्‍ |. चिड़िया की बात सुनकर चिरोंटा बोला–प्राण प्रिये! | | तुमने यह कैसे समझ लिया कि हम इसको नष्ट करने में , ‘ असमर्थ हैं। मैं इसे बर्बाद करने में पूरी सामर्थ्य रखता हूँ। .’ ल्‍ सुनो! इस नगर के समीप एक ग्राम में एक वैश्य की ‘ कन्या का विवाह होने वाला है। मुझे यह ज्ञात है कि उसने ‘ अपनी कन्या को बेंचकर बहुत से रुपये लिए हैं। इसलिए ‘ उस पापी का एक रुपये का सिक्‍का चोंच से पकड़ कर ले आऊँगा और उसे राजा के खजाने में डाल दूँगा। उस पाप के प्रभाव से इसका सारा खजाना नष्ट हो जायेगा। खजाने के नष्ट होते ही सैनिक और सेवक सब राजा की नौकरी छोड़कर चले जायेंगे। सैनिकों व सेवकों के न रहने पर इसका समस्त राज्य शत्रुओं द्वारा ह़प लिया जायेगा। इसलिए तुम्हें अधिक चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। 
. इस प्रकार चिड़िया व चिड़ा आपस में बात कर रहे थे ‘ और इधर राजा ओर रानी दोनों की असम्भव बातें सुनकर : हंस रहे थे। यद्यपि राजा व रानी को अपने राज्य के चले जाने की रत्ती भर भी सम्भावना न थी परन्तु चिड़े ने जो कहा था ‘ उस पर अम्ल किया। 
ल्‍ तत्पश्चात्‌ ईश्वर की कृपा से उनके देखते-देखते उस | राजा के राज्य को एक शक्ति सम्पन्न राजा ने हड़प कर 
) लिया और राजा को कारागार में डाल दिया । इधर उस वैश्य 
का भी सर्वनाश हो गया क्‍योंकि उसने कन्या पर रुपया 
) लिया था। उसको कोढ़ की बीमारी हो गई। 
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