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“कंचन का थाल “

“कंचन का थाल “

काया कंचन थाल है, यांकी कर पहिचान। 
दीना ईश्वर ने तुझे, सोच जय नादान॥ 
किसी नगर का राजा बहुत ही नेकदिल और अच्छे स्वभाव का इंसान था। वह प्रजा के पालन में अन्य राजाओं की अपेक्षा चतुर और विद्वान था। व॒द्धावस्था में उस राजा के एक बेटा उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म की खुशी में उसने गरीबों को बुला-बुलाकर भोजन कराया और दिल से दान किया। 

इसका प्रभाव यह हुआ कि उसके राज्य में कोई गरीब न रहा। जब राजा दान, पुण्य, खैरात कर चुका तो उसका मेहतर नत्थू राम आया। उसने राजा को सिर झुकाकर प्रणाम किया। राजा ने उससे पूछा – क्यों भाई क्‍या तुम्हें इनाम नहीं मिला? उसने उत्तर नहीं में दिया। राजा अपने महल में गया और एक सोने के थाल को जिसमें हीरे जवाहरात जड़े थे लाकर अपने मेहतर को भेंट किया। मेहतर राजा को ढेर सारा आशीष प्रदान कर अपने घर आया। वह रत्न जड़ित थाल उसने अपनी मेहतरानी को दे दिया। मेहतरानी थाल देखकर बहुत प्रसन्न हुई। 
उसके चित्त में यह बात समा गई कि आज तो बहुत अच्छी ढाई सेर वजन की टोकरी आ गई  है। उसने सोचा इसी टोकरी में राजा के यहां का मल मूत्र व कूड़ा उठाया करूगी। मेहतरानी ने प्रतिदिन उस थाल में मल मूत्र उठाना शुरू कर दिया। जिस समय मेहतरानी उस थाल को सिर पर रखकर चटकती मटकती चलती थी तो वह यह सोचती जाती थी कि जैसा टोकरा मेरे सिर पर रखा है, ऐसा टोकरा किसी अन्य मेहतर या मेहतरानी के पास नहीं है। कुछ दिन व्यतीत हो जाने के बाद राजा ने अचानक अपने मेहतर को दीन हीन अवस्था में देखकर कहा- रे नत्थू! तू अब भी कंगाल ही रहा। मैंने तो तुझे ऐसा थाल दिया था, जिसकी बदौलत तू और तेरा परिवार जीवन भर आनन्द से बैठकर खाता। 
 मेहतर बोला -महाराज! आपका दिया हुआ थाल बड़ा सुन्दर और मजबूत है। मै और मेरी मेहतरानी उसी थाल में मल-  मूत्र कूड़ा आदि उठाते हैं। जब से आपके दिए हुए थाल हट को हमने काम में लिया है, तब से हमने अन्य टोकरों को छुआ तक नहीं। महाराज आपका यह दिया हुआ टोकरा अब पुराना जरूर हो चला है। इतना कहकर मेहतर झट महल से बाहर आ गया। वह मेहतरानी से थाल को लेकर पुनः राजा के पास आया और बोला–महाराज! यह रहा आपका दिया हुआ टोकरा। राजा ने जैसे ही उस थाल को मल-मूत्र मिट्टी आदि में सना हुआ देखा तो राजा ने झट से वह थाल मेहतर से ले लिया और बार-बार रोने लगे । मेहतर चुपचाप खड़ा था। राजा ने थोड़ी देर बाद वह थाल अपने पास रख लिया और मेहतर को रुपये देकर भेज दिया। 
भाइयों! इस दृष्टांत से यह शिक्षा मिलती है कि परमात्मा रूपी शरीर राजा ने शरीर रूपी कंचन का थाल मानव को दिया है, परन्तु हमने काया रूपी थाल को विषय भोग, रागद्वेष आदि कूड़े करकट से गन्दा कर दिया। काया रूपी थाल राजा के दिए थाल से कुछ कम न था। प्रत्येक पुरुष का कर्त्तव्य है कि वह परमात्मा के दिये हुए इस काया रूपी थाल को सुरक्षित रखकर इसमें भगवत्‌ भक्ति रूपी वस्तुए प्रयोग करें। 
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